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________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (13) हैं / जगत् में ऐसा कोई कार्य नहीं दिख जायी देता, जिसे करने के लिये परमात्मा की आवश्यकता हो / एक बात और है / यदि परमात्मा घट-घट-व्यापी अर्थात् समस्त संसार में व्याप्त है तो वह हिलडुल नहीं सकता और बिना हिले डुले कोई कुछ भी कार्य नहीं कर सकता। अतः परमात्मा कुछ काम काज न कर सकेगा। अगर वह कुछ क्रिया कर सकता है तो पापियों को तुरंत पाप करने से पयों नहीं रोक देता? सुरेश-जी हां,यह तो समझ गया,किन्तु एक शंका नहीं मिटती। वह यह है कि यदि परमात्मा हमें सुख नहीं देता तो उस की भक्ति करने की क्या आवश्यकता है ? "जेहि जासों - मतलब नहीं, ताकी ताहि न वाह / :गुरु-तो. तुम यह कहते हो कि यदि परमात्मा हमें सुख दे तो उसकी भक्ति करनी चाहिये अन्यथा नहीं। अगर ऐसा है . तोकहना चाहिये कि यह तुम्हारी भक्ति नहीं,वरन् परमात्मा को फुसलाना है और अपने सुख के लिये उसकी चापलूसी करना अथवा घूस देने का प्रयत्न करना है। यह उचित नहीं है। बिना किसी इच्छा के परमात्मा की भक्ति करना ही सच्ची भक्ति है / और ऐसी निष्काम भक्ति ही सर्व श्रेष्ठ है / रही यह बात कि हमें परमात्मा की भक्ति करनी क्यों चाहिये? इस के अनेक कारण हैं / प्रथम तो हमें हेयोपादेय का जो ज्ञान होता है, वह ईश्वर से ही होता है। दूसरे वह आध्यात्मिक उत्कर्ष का आदर्श है और आदर्श के प्रति आदर होने से ही उस ओर प्रवृत्ति होती है। तीसरा कारण यह है कि जो शुद्धात्मा होते हैं उनके प्रति
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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