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________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाली घस्तु? असल में जड़ और चेतन का समुदाय ही जगत् है। इन में चेतन को बनाने वाले की तो आवश्यकता ही नहीं है, क्योंकि चेतन कभी बनता नहीं है / वह तो अनादि और अनन्त है / रहा जड़, सो वह भी नित्य है। उसे बनाने वाले की भी आवश्यकता नहीं। देखो, कागज़ जड़ वस्तु है / जब तुम उसे जला डालते हो तब भी वह राख रूप में बना ही रहता है, उसका कभी नाश नहीं होता / केवल पर्याय (अवस्था) बदल जाती है / यह पहले कागज़ को अवस्था में था,अब राख के रूप में बदल गया। इसी प्रकार जब एक मनुष्य मर जाता है तो उसकी पर्याय बदल जाती है / श्रात्मा दोनों अव स्थानों में एक ही रहती है। सुरेश-पण्डितजी ! आप कहते हैं कि अवस्थाएँ बदलतीरहती .: . हैं / तो उनको बदलने वाला भी कोई होना चाहिए / गुरुक-हां अवश्य होना चाहिये। तुम्हीं बताओ, तुमने कागज़ को जलाकर राख के रूप में बदल दिया तो उस अवस्था * का परिवर्तन करने वाला कौन हुआ ? सुरेश-मैं। .: गुरु०-कुम्हार ने मिट्टी से घड़ा बनाया तो मिट्टी को घड़े के रूप में बदलने वाला कौन हुआ ? . सुरेश कुम्हार ही हुआ ! : गुरु०-बस, इसी तरह कोई कुछ करता है, कोई कुछ। इसी से यह सब परिवर्तन होता है। हा, कुछ कार्य ऐसे भी हैं . : . जिन्हें कोई पुरुष नहीं करता। वे सब निसर्ग से ही होते
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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