________________ (70) सेठियाजेनप्रन्यमाला जिहि जासों मतलब नहीं, ताकी ताहि न चाह / ज्यों निस्प्रेही जीव के, तृण समान सुरनाह // 5 // दोषहि को उमहै गहै, गुन न गहै खल लोक / पियै रुधिर पय ना पियै, लगी पयोधर जोंक // 6 // बिन स्वारथ कैसे सहै, कोऊ कड़वै बैन / लात खाय पुचकारिये, होय दुधारू धैन // 7 // मूढ़ तहां ही मानिये, जहां न पण्डित होय / दीपक की रवि के उदय, बात न पूछे कोय // 8 // खल जन सों कहिए नहीं, गूढ़ कबहुँ करि मेल / यों फैले जग मांहिं त्यों, जल पर बूंदक तेल // 9 // मिथ्याभाषी सांचहूं, कहै न माने कोय। भांड पुकारे पीर वस, मिस समुझै सब कोय // 10 // जाहि बड़ाई चाहिए, तजे न उत्तम साथ / ज्यों पलाश संग पान के, पहुँचै राजा हाथ // 11 // सुजन बचावत कष्ट से, रहे निरन्तर साथ / नयन सहाई पलक ज्यों, देह सहाई हाथ // 12 // कूर- (कूर) दुष्ट. निस्प्रेही(निस्पृही)-निरभिलाष. उमहै गहै- दौड़कर पकड़े. पयोधर- स्तन. धैन (धेनु) गाय. गूढ- गुप्त : पीर- दुःख. मिस --- बहाना.