________________ सेठियाजमग्रन्थमाला पद्यभाग। पाठ 25 बुधजन सतसई के दोहे / (मित्रता) जौलों तू संसार में, तौलों मीत रखाय / सला लिये विन मित्र की, कारज बीगर जाय // 1 // नीति अनीति गनै नहीं, दारिद संपत माहि / मीत सला ले चाल हैं, तिनका अपजस नाहिं // 2 // मीत प्रनीत बचायकै, देहै विसन छुड़ाइ / मीत नहीं वह दुष्ट है, जो दे विसन लगाइ // 3 // धन सम कुल सम धरम सम, सम वय मीत बनाय / तासौं अपनी गोप कहि, लीजै भरम मिटाय // 4 // औरन तें कहबौ नहीं, मन की पीड़ा कोइ / मिलै मीत परकासिये, तब वह देवै खोइ // 5 // एते मीत न कीजिये, जती लखपती बाल / ज्वारी चारी तसकरी, अमली पर बेहाल // 6 // मित्रतना विसवास सम, और न जग में कोय / जो विसवास को घात हैं, बड़े अधरमी लोय // 7 // कठिन मित्रता जोरिये, जोर तोरिये नाहिं / तोरेते दोऊन के, दोष प्रगट है जाहिं // 8 // विपत मैटिये मित्र की, तन धन खरच मिजाज / कबहूं बांके बखत में, कर है तेरो काज // 6 //