________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा न्य से समझाते हैं। दूसरों के आगे अपने विचार प्रगट करने का, उन्हें विचार योग्य ठहराने का और अन्त में स्वीकार कराने का सब से अधिक ग्राह्य और सबसे उत्तम उपाय यही है / जो अपने अधिकार के उन्माद से उन्मत्त हो कर अनुचित दबाव द्वारा अपनी बात मनाने का प्रयत्न करता है, वह निश्चय उन्मत्त ही है / ऐसा करने से जो दृढ़प्रतिज्ञ होते हैं, वे तो आत्मसमर्पण करके भी अपने विचार नहीं पलटते. और जो शिथिल होते हैं, वे उस समय डर के मारे दबाव मान जाते हैं पर दबाव से मुक्त होते ही उन विचारों को तिलाञ्जलि दे देते हैं / इसलिये अपने विचारों में सम्मिलित करने के लिये सत्ता का उपयोग न करना चाहिए, तथा अनुचित दबाव न डालना चाहिए / किन्तु प्रेम से अपने विचार दूसरों के सामने रखकर और उन्हें समझाने का यत्न करना चाहिए। यदि वे न मान तो उनस द्वप न करना चाहिए। जैसे धार्मिक विषयों में मतभेद होता है, उसी तरह सामाजिक सुधार के विषयों में मतभेद होता है / अगर तुम्हारे विचार किसी दूसरे से नहीं मिलने तो उनके विषय में बुरा विचार मत करो / जस तुम्हारे मन में सुधार की लगन है तैसे दूसरों के मन में भी / विचार करो कि यदि उनके चित्त में सुधार की उत्कट भावना न होती, तो वे व्यर्थ ही क्यों तुम्हारा विरोध करते ? साधारगा मनुष्यों की तरह आमोद प्रमोद म ही जीवन क्यों व्यतीत न करते ? पर उनका हृदय भी समाज के अधःपात की चोट से जख्मी हो रहा है। इसलिए उनकी नियत पर सन्देह न कगे / यदि वास्तव में