________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा पाठ 16 व्यापार. प्राचीन काल में प्रत्येक वर्ण का एक 2 नियत कर्तव्य होता था / ब्राह्मण पठन पाठन करते, क्षत्रिय प्रजा की रक्षा करते, वैश्य व्यापार करते और शूद्र सेवावृत्ति करते थे / उस समय, आपत्तिकाल के सिवाय कभी एक दूसरे की वृत्ति को कोई नहीं अपना सकता था / किन्तु अब जमाना पलट गया है / इस कारमा उल्लिखित वृत्तियों का विभाग ज्यों का त्यों नहीं रहा है / आजकल ब्राह्मण क्षत्रिय का, क्षत्रिय ब्राहागा का, वैश्य ब्राह्मगा क्षत्रियों का, ब्राहाणा क्षत्रिय वैश्यों का, और शूद्र भी दूसरे सय वर्णा के कर्म बेरोक कर्म प्रायः व्यापार ही है / यद्यपि प्राचीन कालीन वैश्यों का जितना व्यापार अब वैश्यों के हाथ में नहीं है, फिर भी भारतवर्ष के व्यापार का अधिकांश आजकल जी वेश्यों ही के हाथ में हैं। व्यापार में जिन बातों की आवश्यकता पड़ती है उनमें से कितनीक बात इस पाठ में बतलाई जाती हैं वह यह हैं- (1) न्यायशीलता 2) शुभ-अध्यवसाय (विचार) (3) अप्रमाद (2) उत्तम पुरुषों से व्यापार-व्यवहार (5) सचाई (6) विंचकता (7) मैत्री (8) द्रव्य क्षेत्र कात्त भाव का ज्ञान / 1 न्यायशीलता-ईमानदारी के विना व्यापार हो ही नहीं सकता। जो बहुमूल्य धाली वस्तु में अल्प मूल्य की वस्तु मिला