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________________ (28) सेठियाजैनग्रन्थमाला होनी शुरू होती है / परन्तु उसे पहली जीत के नशे से और आगे होने वाली जीत की कल्पना से हार का खयाल नहीं रहता। यहां तक कि लोग घर के वासन वर्तन और तन के कपड़े लत्ते भी बेचते हुए देखे जाते हैं / इनके सिवाय और भी इसी प्रकार की धूर्तताओं से लोग ठगे जाते हैं / यह सब ठगाई तब ही होसकती है, जब यात्री में लोभ हो / जिन्हें विना हाथ पैर हिलाये श्रीमान् बनने की हवस होती है, उनकी ही ऐसी दुर्दशा होती है / चौबेजी छब्बे बनना चाहते हैं पर दुबे ही रह जाते हैं / इसलिए यात्रा करते समय निर्लोभता धारण करना अत्यन्त आवश्यक है। __ (2) ब्रह्मचर्य की शिथिलता- देशाटन करते समय जैसे अनुकूल संयोग मिलते हैं वैसे प्रतिकूल संयोग भी मिलते हैं। जैसे साधु पुरुषों का संसर्ग प्राप्त होता है, वैसे दुष्ट लुच्चे गुंडों का भी। जब ऐसा खराब संयोग मिलता है, तो कभी 2 मनुष्य का मनुष्यत्व भी मिट्टी में मिलजाता है / इन बुरे संयोगों में से ब्रह्म चर्य में शिथिलता आना मुख्य है। जिसके ब्रह्मचर्य में शैथिल्य श्राजाता है, वह किसी काम का नहीं रहता / यहां तक कि प्राण जाने तक की नौवत आपहुँचती है / इस कारण विना प्रयोजन गली कूचों में घूमना, बड़ा भयंकर है। अकसर लुच्चे लोग अनेक प्रलोभन देकर इस दुराचार के अन्धे कुँए में ढकेल देते हैं / ऐसे लोगों को पास भी न फटकने देना चाहिए। (3) असावधानी-यात्रा करते समय असावधान रहने से चोर तमाम माल असबाब उठा लेजाते हैं / या जेब काटकर रुपये पैसे आदि जो कुछ होता है, निकाल लेते हैं / इसलिए यात्रा करते समय चौकन्ना रहना चाहिए / इन तीन बातों के सिवाय
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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