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________________ सेठियाजैनग्रन्थमाला कहावत भी है---"पहला सुक्ख निरोगी काया" / अतएव-निरोग आदमी का जीवन जितना सुखमय व्यतीत होता है, उसका शतांश भी सुख रोगी समृद्धिशाली को नसीब नहीं होता। अब तुम विचार सकते हो कि सम्पत्ति और स्वास्थ्य में, कौन वस्तु अधिक मूल्यवान है / स्वास्थ्य ही संसार में परम सुख है,स्वास्थ्य ही परम आनन्द है / अपने आपको स्वस्थ रखना मनु. प्यमात्र का कर्तव्य है / लेकिन स्वास्थ्य तब ही बना रह सकता है,जब हम स्वास्थ्य के आवश्यक नियमों को जानकर उनके अनुसार बर्ताव करें ! भला जो अपने शरीर ही की रक्षा नहीं कर सकता वह दूसरों का क्या भला कर सकता है?अत एव अपनी,अपने परिवार की और दूसरे मनुष्यों की भलाई के लिये शरीर नीरोग रखने की चेष्टा प्राणपण से करनी चाहिए। ___बहुत से लोग शरीर रक्षा को एक साधारण बात समझ ते हैं / इसीलिये अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान नहीं देते / उनका विचार होता है कि जब तक अंगोपांग काम करते हैं, तब तक उनकी चिन्ता करना व्यर्थ है / परन्तु ऐसा विचार करने वाले भयंकर भूल करते हैं। वे लोग आग लगने पर कुँा खोदना चाहते हैं। बीमारी होने पर उसका उपाय किया जाय, इसकी अपेक्षा ऐसा उपाय करना ही उचित है, जिससे बीमारी होवे ही नहीं ! संभव है बीमारी होने के बाद कोई उपाय कारगर न हो / इसलिये पहले बीमारी न होने देना ही चतुराई है। पैर में कीचड़ लगाकर धोने की अपेक्षा, कीचड़ न लगने देने में ही बुद्धिमत्ता है। जो लोग अपने स्वास्थ्य की लापरवाही करते हैं, वे अपमा ही अहित नहीं करते, बल्कि देश और जाति का भी अहित
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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