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________________ (30) सेठियाजैनग्रन्थमाला 81 तेल की मालिश करना अत्यन्त लाभदायक है; इसलिए बुद्धिमान लोग रोज़ नहीं तो सप्ताह में एक बार अवश्य करते हैं, यदि इतना भी न बन सके तो जाड़ों के दिनों में तो तेल की मालिश अवश्य करते हैं / तेल मर्दन करने से धातु पुष्ट होती है, तथा बल बुद्धि और रूप बढ़ता है, एवं शरीर का चमड़ा कोमल हो जाता है। नियमपूर्वक मालिश करने वाले के दाद खाज खुजली आदि चर्म रोग का भय स्वप्न में भी नहीं रहता / सिर में तेल डालने से बुद्धि बढ़ती है, बाल जल्दी नहीं पकते, भौंरे के समान काले और चिकने बने रहते हैं। नेत्र की ज्योति बढ़ती है, और मस्तक सम्बन्धी रोग दूर होते हैं / तथा कान में भी डालते रहना चाहिये, इससे कान सम्बन्धी कोई रोग नहीं होता और मस्तक तर रहता है / 82 चिन्ता से हमेशा दूर रहो, चिन्ता के समान सर्वनाशक मौर कोई नहीं है / चिन्ता से बल-वीर्य बुद्धि और रूप का नाश हो जाता है ! चिन्ता भी राजयक्ष्मः (क्षय रोग) का एक कारण है। राजयक्ष्मा ऐसा रोग है, जिसे ब्रह्मा भी आराम नहीं कर सकता / दूसरी सब बीमारीयां का इलाज है, किन्तु चिन्ता की बीमारी का इलाज नहीं है। चिता मरे हुए को जलाती है, लेकिन चिन्ता जीते हुए को जलाकर भस्म कर देती है / यदि सुख से बहुत दिन तक जीना चाहते हो तो चिन्ता को त्याग दो / 83 शोक के वशीभूत मत होओ / शोक करने से कुछ लाभ
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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