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________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा [36] जाती थी। और फिर वह उसे सुना देता और कहता. मैंने यह तो पहले भी सुनी है / अगर न सुनी होती तो जैसीकी तैसी कैसे सुना सकता। इस तरह उसकी कीर्ति सर्वत्र फैल गई। इसी समय में किसी दूसरे साधु ने उसकी प्रतिज्ञा का हाल सुना / उसने सन्यासी के पास आकर कहा-मैं नई बात सुनाऊंगा। सय लोग इकट्ठे होकर राजसभा में गये / होड़ वदी गई। होड़ के अनुसार साधु ने पढ़ामेरा पिता, पिता तेरे मे; मुद्रा मांगे पूरी लाख / पहले अगर सुनातो देदे, नहिं तो खोरक मागेराख॥१॥ ____ यह सुन कर सन्यासी चुप हो रहा, कुछ भी न पोल सका / आखिर सब के सामने उसे लजित होना पड़ा। __बालको. तुम यदि बुद्धिमान हो तो बुद्धि का अ. भिमान न करो / अभिमानी का अभिमान सदानहीं टिक मकता / आखिर लजित होता ही है।
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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