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________________ [32] सेठियाजैनग्रंथमाला मत्य बोलें, कभी अमत्य न बोलें और असत्य बोलने वालों की संगति न करें / कहा है सांचे श्राप न लागहीं, सांचे काल न खाय। मांचे को सांचा मिले, सांचे मांहि समाय // पाठ बारहवाँ असत्य का फल. बालको! तुम पढ़ चुके हो कि हर एक को सदा मत्य बोलना चाहिये / इस समय तुम्हें बताया जाता है कि झूठ बोलने से क्या हानि होती है / शुक्ति नाम की नगरी में अभिचंद्र राजा था। उसके बेटे का नाम वसु था। वह छुटपन से ही सच बोलता था। उसी नगरी में क्षीरकदम्बक उपाध्याय रहता था। उसके लड़के का नाम पर्वत था। पर्वत स्वभाव से ही कुटिल था / एक वसु दूसरा पर्वत और तीसरा नारद ये तीनों क्षीरकदम्बक उपाध्याय के पास पढ़ते थे। किसी समय क्षीरकदम्बक छत पर बैठा था ।तीनों शिष्य वहीं सोरहे थे / उसी समय दो चारा मुनि आकाश-मार्ग में बातें करते हुए निकले। उनमें से एक ने कहा- "इन तीनों में एक तो स्वर्गगामी है, और
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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