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________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला की जरूरत है। यदि आपके पास हो, तो कृपा कर के दीजिये। गुरुजी कुमारपाल की तरफ इशारा कर के घोले- हमारे पास लकड़ी का खंभा तो नहीं है, पर इस लड़के को लेते जाओ / यह अविनीत है। इस लिए खंभे के ही समान है। गुरुजी की बात सुन कर कुमारपाल घबराया / उसने कहा- पण्डितजी! अब मैं कभी अविनय न करूंगा / विनय करना सीखूगा / बताइये, विनय किसे कहते हैं? / गुरुजी बोले- देव गुरु धर्म और आगमों की भक्ति करना, अपने से बड़े माता पिता और अध्यापक आदि का सन्मान करना, बराबरी वालों से भलमनसई का बर्ताव करना, यही सब विनय कहलाता है। कुमारपाल ने कहा-आज से ही मैं विनय करूंगा। गुरुजी खुश हुए और उससे बहुत प्रेम करने लगे। लड़को! विनय हीन लड़का लक्कड़ के समान होता है। उसे न तो कभी सन्मान ही मिलता है, न कोई उसकी बड़ाई करता है। इस लिए सब को विनयी बनना चाहिये। ..
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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