________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला पाठ 21 वाँ उत्तम उपदेश दोहा। लोभ पाप को बाप है, क्रोध कूर यमराज / माया विष कीवेलरी,मान विषम गिरिराज // 1 // ना जाने कुल शील के ना कीजे विसवास / तात मात जाते दुखी, ताहि न रखिये पास॥२॥ एकाक्षर दातार गुरु, जो न गिने विन ज्ञान / सो चडाल भवको लहै,तथा होयगाश्वान // 3 // तेता आरंभ ठानिये, जेता तन में जोर / तेता पाँव पसारिये, जेतो लायो सोर // 4 // को स्वामी मम मित्र को, कहा देश में रीत / खरच किता आमद किती, सदाचितवोमीत॥५॥ जो कुदेव को पूजिकै चाहे. शुभ का मेल / सो बालू को पेलिकै; काढ्या चाहै तेल // 6 // कहे वचन फेर न फिरे, मूरख के मन टेक / अपने कहे सुधार लैं, जिन के हिये विवेक॥७॥ . घोराही लेना भला, बुरा न लेना भौत /