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________________ सेठियाजैनग्रन्थमाला खोजने के लिए रवाना हुई / सेना, खोजते खोजते आखिर वहीं जा पहुँची, जहाँ राजा भूखे पड़े थे / सेना ने महाराज को देखकर नमस्कार किया / राजा भूखा था। उसने हलवाई से अनेक पकवान तैयार करने को कहा / जब पकवान तैयार हुए, तो राजा उन पर ऐसे टूटा जैसे कबूतर पर बाज टूटता है / सब लोगों ने समझाया, पर उसने एक न मानी। वह तृष्णा के मारे खूब खा गया। फल यह हुमा कि राजा को अजीर्ण रोग हो गया और उसीसे मरण भी हो गया। मंत्री बुद्धिमान् था / उसने इतना ज्यादा न खाया था इसलिये वह नीरोग रहा।। हे बालको ! इस कहानी से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि तृष्णा का कभी अन्त नहीं होता। वह समुद्र की तरह अथाह होती है। तृष्णावान कभी सुखी नहीं हो सकता। इस कहानीसे यह भी मालूम होता है कि अनजान जानवर का विश्वास न करना चाहिए। और हवस के मारे इतना ज्यादा न खाना चाहिए कि वह पच न सके। तृष्णा मिटे संतोषत, सेयें अति बढ़ जाया तुन डारें आग न वुझै, तृना रहित बुझ जाय //
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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