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________________ [14] सेठिया जैन ग्रन्थमाला को छोड़ कर न्याय मार्ग ग्रहण करो। कषाय वश यदि काम पडजाय तो पंचों से मामला तय करलो। चिन्ता हैरानी से बचो। अटरनी (ATTORNEY-जिसकी मार्फत वैरिष्टर नियुक्त किये जाते हैं) के पास न जाओ, नहीं तो खर्च देते समय पछताना पडेगा। 131 जिस जगह शोक चिन्ता मोह और दुःख पैदा हो उस जगह को छोड देना चाहिए, जहां ज्ञान वृद्धि हो वहां जाना चाहिए। 132 बड़ों का यह कहना है कि जो न्याय मार्ग और सिद्धान्त के अनुसार चलता है उसे मुकद्दमा नहीं लगता एवं दुःख नहीं होता-बिलकुल सत्य है। 133 पीठ पीछे निन्दा करने से वैर बढ़ता है। 134 नीच आदमी को न छेड़ना चाहिए, . नहीं तो " रेकार तुकार सुनना पडेगा। 135 जहां छत या चंदोबा आदि न हो वहां तथा नग्न ( उघाड़े शरीर ) न सोना चाहिए। .. 136 प्रातः मध्याह्न सन्ध्या और मध्य रात्र इन चार " कालों में अशुभ बात न कहनी चाहिए /
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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