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________________ .(120) सेठियाजैनग्रन्थमाला होती है / प्रजा को सुख सावधान राजा से मिलता है / राज्य की दृढ़ता न्याय से होती है / न्याय की शोभा बुद्धि से होती है। १०४थोड़ा बोलनेसे,आवश्यकता होने पर विचार कर बोलनेसे, मीठा बोलनेसे,चतुराई से बोलनेसे,मर्मभेदी वचन न बोलनेसे,विनय से बोलनेसे, शास्त्रानुसार बोलनेसे, सबजीवों को सुख देने वाले वचन बोलनेसे मनुष्य बड़ा कहलाता है / 105 जैसे चन्द्र को देखकर चकोर प्रसन्न होता है अथवा मेव की गर्जना सुनकर मोर खुशी के मारे नाचने लगता है, वैसे ही गुणी पुरुषों को देखकर अन्तःकरण आनन्द से उमंग उठे, उसे मुदित भावना कहते हैं। 106 किसी दुःखी को देखकर दयाई हृदय से शक्ति अनुसार सहायता कर उस के दु:ख दूर करना करुणा भावना है। 107 जिस पर किसी प्रकार हितोपदेश असर नहीं कर सकता, ऐसे अतिकठोर चित्तवाले प्राणी पर द्वेष न कर उस से दूर रहने को माध्यस्थ भावना कहते हैं। 108 हे आत्मन् / निर्मल दयारूपी जल से स्नान करो संतोष रूपी शुभ वस्त्र पहनो, विवेक रूपी तिलक करो, भक्ति रूपी केशर घोलकर उसमें श्रद्धारूपी चन्दन मिला आत्मध्यान रूपी कस्तूरी का संयोग करो, तथा ब्रह्मचर्य रूपी नवांग शुद्ध होकर मात्मरूप देवाधिदेव की भाव से पूजा करो।
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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