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________________ नीति-शिक्षा-संग्रह ही मिलती हैं; अत एव उन की प्राप्ति के लिए सतत लगे न रहना चाहिए; किन्तु शान्ति क्षमा विनय ज्ञान चारित्र मादि आत्मीय गुणों को बढ़ाने के लिए सतत उद्योग करना चाहिए, क्यों कि यह आत्मीय गुण अभ्यास और उद्योग से बढ़ सकते हैं। - 81 जैन इंधन से अग्नि शान्त नहीं होती, बल्कि बढ़ती हो जाती है, वैसे ही विषय भोग से इन्द्रिया तृप्त नहीं होती, लेकिन तष्णा बढ़ती जाती है और ज्यों ज्यों आत्मा विषय भोग में लिप्त होता है, त्यों त्यों कामाग्नि की वृद्धि करता है। 89 मुमुतुओं को हमेशा उन्नत महात्माओं की ओर दृष्टि रखना चाहिए, गिरते हुए कायर पुरुषों की ओर नहीं! क्योंकि महात्माओं की ओर लक्ष्य रखने से वीरता याती है और कायर पुरुषों की ओर लक्ष्य रखने से कायरता आती है / 83 संसार के सब प्राणी मेरे मित्र हैं, कोई भी मेरा शत्रु नहीं है, वे सब सुख पावें दुःख कोई भी न पावे / सब सुख के मार्ग पर चलें, दुःख के मार्ग से बचें, ऐसी मति का नाम मैत्रीभावना है। 81 एक बड़े आदमी के भाग में बहुत से छोटे 2 पादमियों का साझा होता है; इसलिए उसे समझलेना चाहिए कि वह जितना अधिक उन लोगों को लाभ पहुँचायगा, उतना ही अधिक उसका भाग बढ़ेगा।
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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