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________________ नीति-शिक्षा-संग्रह (111) कहे और मुँह से ऐसी बात निकाले जिस में अक्षर थोड़े हों किन्तु मतलब बहुत निकले / __ 57 अपने मन की बात अनजान मनुष्य को न बतावे दूसरे की बात खूब सुन समझ कर जबाब दे / 58 अगर स्त्री पुरुष में तकरार हो या गुरु शिष्य तथा बाप बेटे में झगड़ा हो तो बुद्धिमान उनकी गवाही न दे। अगर किसी विषय की सलाह करनी हो तो गुप्त स्थान में करे और शरणागत को न छोड़े / 56 अपने करने योग्य जरूरी काम को सामर्थ्यानुसार करे, आफत पड़ने पर न घबरावे और किसी की झूठी बदनामी न करे / 60 अपनी युक्तियों से किसी की बात न काटनी चाहिये; हरएक बात का जबाब विचार कर देना चाहिये; ऐसे मौके पर जल्दी करना ठीक नहीं है। 61 मनुध्य पूर्व कृत कर्मों से धनवान् और निर्धन होता है, अत: किसी से ईर्षा द्वेष न करना चाहिये। सब से मित्र भाव रखना ही भला है।... .. 74 दुर्गुणी मनुष्यों की संगति कभी न करनी चाहिए, क्योंकि उनके दोष छूत के रोग के समान आत्मा में चिपट जाते हैं / / 75 अच्छी जगह बैठने से सुख और बुरी जगह बैठने से दुःख होता है / माली और लोहार की दुकान पर बैठकर देख
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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