________________ (88) सेठियाजैनग्रन्थमाला और तपस्या करने का अभ्यास करता है, वह बार बार मनुष्य जन्म पाता है तथा अन्त में कर्मों का क्षय कर मोक्ष पाता है। 18 जो विद्या सिर्फ पुस्तकों में ही रहती है, अर्थात् कण्टस्थ नहीं की जाती, वह विद्या और वह धन जो पगये हाथ में रहता है; मौका पड़ने पर किसी काम में नहीं आता। 16 जिस ने केवल पुस्तक के सहारे विद्याभ्यास किया है, किन्तु गुरु के पास जाकर विद्या नहीं पढ़ी, वह सभा के बीच इस तरह शोभा नहीं पाता, जिस तरह व्यभिचारिणी गर्भवती होकर शोभा नहीं पाती। 20 जो भलाई करे, उस के साथ भलाई करना उचित है, जो युद्ध करे, उससे युद्ध करना तथा जो बुरई करे उस के साथ बुराई का आचरण करना नीति में उचित बतलाया है, तो भी धार्मिक पुरुष ऐसा वाव नहीं करते, वे बैर करने वाले के साथ स्नेह और बुराई करने वाले के साथ भलाई ही करते हैं। 21 जो दूर है, जिस का सेवन करना अति कठिन है और जो बहुत दूर पर रहने वाला है, वह सब तपस्या करने से सिद्ध हो सकता हैं; इसलिए तप बल के बराबर दूसरा कोई बल नहीं है। 22 यदि लालच है, तो और अवगुणों से क्या प्रयोजन ? अगर चुगली है तो और पाप कामों से क्या मतलब ? यदि सूर्ण सत्य है, तो तपस्या से क्या प्रयोजन ? यदि मन साफ है तो तीर्थ यात्रा करने