________________ भांति उत्तम कुल का दरिद्र मनुष्य अपनी कुलीनता सुशीलता और उसम आचरण मादि सद्गुणों को नहीं छोड़ता। 100 जो मूर्ख मोह के वश यह समझता है कि अमुक स्त्री मुझे प्यार करती है, वह उस के अधीन होकर क्रीड़ा (खेल) के पक्षी के समान नाच। करता है / 101 धन पाकर किसे घमण्ड न हुआ? कौन विषयी पुरुष संकट से दूर रहा ? इस संसार में स्त्रियों ने किस का मन खण्डित नहीं किया? , गजा का प्यारा कौन हुआ? , काल के वश कौन न हुआ ? , किप मांगने वाले ने बड़ाई पाई ? , दुर्जन के हाथ में पड़कर किम ने संसार का मार्ग सुख से पार किया। - 102 सोने के हिरन का होना किसी ने न देखा है और न सुना है, तो मी रामचन्द्रजी सरीखे ज्ञानवान् का मन सोने के हिरन पर ललचा गया, इससे मालूम होता है कि विनाशकाल आने पर सब की बुद्धि उल्टी हो जाती है। 103 प्राणी की बड़ाई उस के गुणों से होती है, ऊंचे प्रासन पर बैठने से नहीं / को गा क्या महल के शिखर पर बैठने से गरुड़ के समान हो जाता है? / 1.4 बड़ी भारी सम्पत्ति वाले का आदर सब जगह नहीं होता, परन्तु गुणों का आदर सब जगह होताहै। जैसे लोग पूर्णमासी के पूर्ण चन्द्रमा का उतना सन्मान नहीं करते , जितना कि कलंक रहित दोज के चन्द्रमा का करते हैं।