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________________ नीति-शिक्षा-संग्रह चाहिए। 101 मनुष्य मात्र को पर की निन्दा न करनी चाहिए, अपने से विपरीत आचारण करने वाले को करुणा-दृष्टि से सन्मार्ग पर लाने का पूर्ण प्रयत्न करना चाहिए, या शत्रु को प्रेम का बर्ताव कर अपने अनुकूल बनाने का शक्ति भर प्रयत्न करना चाहिए / यदि इसमें सफलता न हो, अर्थात् वह विपरीत आचरण या शत्रुता का त्याग न करे तो उस पर द्वेष न कर उदासीनता धारण करनी चाहिए। 102 भारी आपत्ति के आने पर दीनता नहीं धारण करना चाहिए , किन्तु उसे पूर्व संचित-कर्म का फल सभझकर समभाव से सहलेना ही उत्तमता है / यदि उस समय दीनता या अधीरता धारण की जाय तो भी आपत्ति पीछा नहीं छोड़ती, उलटा बुरे कर्मों का बन्ध होता है,ऐसा विचार कर शान्ति धारण करनी चाहिए। शान्ति धारण करने से कर्म अपना फल देकर नष्ट हो जाते हैं और आत्मा स्वच्छ बन जाती है / इसलिए दुःख-संकट आ जाने पर समभाव रखना अति आवश्यक और लाभदायक है। 103 किसी के साथ विरोध न करना चाहिए / विरोध करने से वैर बढ़ता है और आत्मा में आर्तध्यान और रौद्रध्यान बना रहता है / जिस से आत्मा नरकगति तिर्यञ्चगति का अधिकारी होता है; इसलिए विचारशील पुरुषों को विरोध करने के पहले विचार लेना चाहिए कि इस से मुझे क्या हानि और क्या लाभ होगा।
SR No.023531
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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