________________ नीति-शिक्षा-संग्रह दिनों तक व्यापार पट्ट पड़ जाय , या घर में किसीका विवाह मा जाय, या कोई कार्य आ जाय, मकान गिर जाय,या किसी शत्रुसे अदालत लग जाय, या अन्य कोई दैवी घटना उपस्थित हो जाय तो उस समय इकट्ठा किया हुआ धन काम देगा / आमदनी की एक चौथाई धर्म कार्य में अवश्य खर्च करता रहे , और शेष आधे में अपने और अपने कुटुम्ब के काम चलावे / धर्म कार्य में कंजूसी भूल कर भी न करे, क्योंकि परिणाम में सखी सूम दोनों बराबर हो जाते हैं / अर्थात् अन्तमें सूमका भी पैसा चला जाता है / जो मनुष्य धर्म के कामों में खर्च नहीं करता,उसे फिर पछताना पड़ता है; क्योंकि जहां धर्म का मनादर होता है,वहां चोरी होती,आग लगती,अथवा धर्महीन मनुष्यों का धन और भी कई प्रकारों से नष्ट हो जाता है / 65 बहुत विचार के साथ खर्च करना चाहिए, किसी दूसरे की देखादेखी शक्ति के बाहर न करना चाहिए, या स्वार्थी चापलूसों के मुंह से झूठी प्रशंसा सुनकर धन को लुटा नहीं देना चाहिए / अनुकूल व्यय करने से ही आत्मा को शांति मिलती है / इसलिए सांसारिक कामों में फिजूल खर्च न कर समाज और देश की उन्नति करनेवाले उत्तम 2 कामों में धन खर्च करना चाहिए / 66 आय के अनुसार व्यय करने वाला गृहस्थ प्रतिष्ठित समझा जाता है, और यश, पुण्य, सुख, सम्पत्ति को और धर्म अर्थ काम के अनुरूप सिद्धि को भी पाता है।