________________ नीति-शिला-संग्रह (57) 84 जिस को बुद्धि है, उसी को बल है, निर्बुद्धि को बल कहां हो सकता ? , देखो छोटे से पशु सियार ने अपनी बुद्धि के बल से बलवान् मदोन्मत्त सिंह को कुँए में उसकी परछाई द्वारा दूसरा सिंह दिखा कर मार डाला। 85 उदारता, मृदुभाषण, धीरता और उचित का ज्ञान, ये चार गुण प्रकृति-जन्य हैं, अभ्यास से नहीं मिलते / 86 हाथी का शरीर स्थूल है, पर वह भी अंकुश के वश रहता है, तो क्या हाथी के बराबर अंकुश है ? , दीपक जलने पर अन्धकार आप ही नष्ट हो जाता है, तो क्या दीपक के समान अन्धकार है? , वज्र गिरने से पर्वतों का चूर्ण हो जाता है, तो क्या पर्वत के समान बज्र है ?, छोटा होने पर भी जिस में तेजस्विता रहती है, वही बलवान् गिना जाता है / स्थूलता बलका कारण नहीं। 87 घर में आसक्त रहने वालों को विद्या नहीं, मांस-भोजियों को दया नहीं, धन के लोभी को सत्य नहीं, व्यभिचारी को पवित्रता नहीं। 88 अनेक प्रकार की शिक्षा देने पर भी दुर्जन, सज्जन बन नहीं सकता, जैसे नींब के वृक्ष की जड़ में दूध घी सींचने पर भी वह कभी मीठा नहीं हो सकता। 86 जो जिस के गुण का महत्त्व नहीं जानता, वह निरन्तर उस की निन्दा किया करता है ; जैसे भीलनी प्राप्त हुए गजमुक्ता को