________________ नीति-शिक्षा-संग्रह (49) - 28 सन्तोष रूपी अमृत से जो तृप्त हैं, उन्हें जो शान्तिसुख मिलता है, वह इधर उधर मारे फिरने वाले धन के लोभियों को नहीं मिल सकता। 26 अपनी स्त्री, भोजन और धन में संतोष करना चाहिए, किन्तु पढ़ना जप और दान इन तीन में संतोष कभी न करना चाहिए। 30 गाड़ी से पांच हाथ, घोड़े से दश हाथ, और हाथी से हजार हाथ दूर रहना चाहिए; लेकिन दुर्जन से दूर रहने के लिए देश छोड़ देना चाहिए। 31 हाथी केवल अंकुश से, घोडे लगाम से, सींगवाले पशु लाठी से तथा दुर्जन तलवार से दण्ड पाते हैं / ___32 ब्राह्मण भोजन पाकर संतुष्ट होते हैं , मोर मेघ की गर्जना सुनकर हर्षित होते हैं , सत्पुरुष दूसरे की सम्पत्ति देखकर प्रसन्न होते हैं और दुर्जन दूसरे को विपत्ति में पड़ा देखकर खुश होते हैं। 33 बलवान् बैरी को उसके अनुकूल आचरण करके, दुर्जन शत्रु को उसके प्रतिकूल चलकर वश करे / समान बलवाले शत्रु को विनय से अथवा बल से जीते / : 34 अत्यन्त सरल स्वभाव से नहीं रहना चाहिए, अर्थात् हृदय में तो सरलता रहनी चाहिए, लेकिन दिखावे में अत्यन्त सरलता न रखनी चाहिए / इसका फल वन में जाकर देखो / विचारे सीधे वृक्ष काटे जाते हैं, और टेढ़े वृक्ष वैसे ही खड़े रहते हैं /