________________ नीति-शिक्षा-संग्रह 80 आयुष्य शुभाशुभ-कर्म धन विद्या और मरण ये पांच, जब जीव गर्भ में रहता है, तब भी नियत हो रह हैं / 81 जैसे मछली देखकरके, कछुई ध्यान करके, तथा पक्षी स्पर्श करके अपने बच्चों को सदा पालते हैं, वैसे ही सज्जनों की संगति,-दर्शन, ध्यान और स्पर्श से रक्षा करती है। 82 जब तक शरीर नीरोग है, और मृत्यु दूर हैं, तब तक पुण्य "भादि मुकर्म करके आत्मा का हित करना उचित है, प्राणों का मन्त हो जाने पर कोई क्या करेगा ? / 83 विद्या कामधेनु के समान गुणवाली, भकाल. में भी फल देनेवाली, तथा प्रवास में माता के समान हित करनेवाली है विद्वान इसे गुप्त धन मानते हैं। 84 सैंकड़ों गुणहीन पुत्रों से एक गुणवान पुत्र ही श्रेष्ठ है / एक ही चन्द्रमा रात्रि के घोर अन्धकार को दूर करता है हजारों तारे नहीं। 85 मूर्ख पुत्र के चिरकाल तक जीवित रहने से उत्पन्न होते ही मर जाना अच्छा है / क्योंकि मरजाने से थोड़े ही समय तक दुःख होता है और जीवित रहने से जीवन पर्यन्त दुःख भोगना पड़ता है। 86 कुग्राम में वास, नीच कुल की सेवा, कुभोजन, कलह करने वाली स्त्री, मूर्ख पुत्र और विधवा लड़की ये छह विना आग