________________ सेठियाजैनग्रन्थमाला सांसरिक सुख की सामग्री स्वयमेव मिल जावेगी। 12 दूसरे के अधिकार या कर्त्तव्य के अनुसार चलने का प्रयत्न न करो / तुम्हारी योग्यता ने जिस अधिकार पर तुम्हें नियुक्त किया है, उसी के अनुसार बत्तीव करो / अधिकार बढ़ने पर तुम्हें मार्गदर्शक भी मिल जायेंगे / 13 तुम्हें क्या करना है, इसे रोज़ रोज़ दिवस ही तुम्हें सूचित करता रहेगा, चिन्ता न करो। 14 दूसरे के कर्तव्य-मार्ग पर चलते रहोगे तो तुम अपने कर्तव्य का पालन पूरी तरह नहीं कर सकोगे 15 वर्तमान में जो कर्तव्य तुम्हें सौंपा गया है, उस पर पूरा खयाल रक्खो / भूत भविष्यत्काल को याद न करो / पहले स्वयं सुधरो, बाद में दूसरों को सुधारो / 16 सत्ता और पदाधिकार वाले मनुष्यों को अधिक हानि उठानी पड़ती है / सता या पदवी के अभिमान के वश वे दूसरों से ज्ञान का लाभ नहीं ले सकते / 17 सत्ताधारियों और पदाधिकारियों के आखों के सामने अपने को बड़ा और दूसरेको छोटा मानने का परदा पड़ा रहता है। 18 छोटे मनुष्य अपनी निर्बलता और अज्ञानता स्वीकार करके दूसरे की सुनता है—शिक्षा ग्रहण करता है; इसलिए उस के आगे बढ़ने की अधिक सम्भावना है।