________________ (12) सेठियाजैनग्रन्थमाला 32 विनयवान होना। 33 दीनों पर दया करना / 34 सौम्य दृष्टि रखना / 35 कृतज्ञ होना। उपदेशमाण-माला. (1) 1 पात्र के अनुसार बर्ताव होता है, दृढ़-प्रकृति वाले की छाप दूसरे पर पड़ती है-उसके स्वभाव के अनुकूल दूसरे को होना पड़ता है। - 2 देश काल और परिस्थिति के अनुसार जहां जिस की ज़रूरत हों, वहां उसके साथ वैसा ही बर्ताव करना चाहिए। 3 आत्म-धर्म पर दृढ़ रहने से मोहादि दुर्गुणों का नाश होता है। 4 उत्तम शिक्षा देकर अभिमानी का अभिमान दूर करना और उसे अपनी ओर आकर्षित करना, यही सच्चा विनय है / ऊपर की नम्रता तो दिखावा मात्र है-जड़ता रूप है / जब तक अज्ञानता है, तब तक ऊपर की नम्रता उपयोगी है। 5 विनय करना, लेकिन विवेकपूर्वक करना चाहिए / तुम्हारे प्रति जिस के बुरे विचार हैं, उसका विनय करने से उल्टा परिणाम हो जाता है—'यह दंभी है' इत्यादि ओछे खयाल उत्पन्न