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(७१) दोषी हणायेलो होय तोपण ते अनुष्ठाननो पक्ष करे छे. एटळे अनुष्ठाननीज पुष्टि कर्या करे छे. आसन्नसिद्धि जीवोने क्रिया करवाना परिणाम (भाव) सर्वदा होय छे. अभव्यने अने दुर्भव्य जीवोने अविधिने विषे भक्ति होय छे ने विधिनो त्याग होय छे एटले क्रियापर अरुचि होय छे."आ प्रमाणे सांभळीने कुशळ पुरुषोने विषे अग्रेसर अने लघु छतां पण बुद्धिए करीने मोटा एवा अजितदत्ते " भावतुं हतुं अन वैद्य को" एम मानीने आनंदथी नंदि (नांद मांडवा) विगेरे महोत्सवपूर्वक अपूर्व बहुमानसहित उपधान तपने मुख्य विधिवडेज वहन कयु. एनो मोटो भाइ तो सांसारिक मुखमां आसक्त हतो,तथा पौषध उपवास विगेरे क्रियाओगें दुष्करपणुं मानतो हतो, तेथी निर्लज्जतादि साहसने धारण करीने कहेतो के-"सूत्रो तो प्रथम ज अस्खलितपणे भण्या छीए, मोटे हवे फोगट दुष्कर तप करवा रूप क्लेशना आवेशनो आश्रय करवाथी शुं फळ छे?क छेके"अतिक्लेशेन ये त्वर्था धर्मस्थातिक्रमेण च । शत्रूणां प्रणिपातेन ते ह्यर्थी मा भवन्तु मे ॥ ____ अर्थ-कोई नीतिज्ञ पुरुष कहे छ के-"जे अर्थों (द्रव्य) अति क्लेशथी प्राप्त थाय छ, तथा जे धर्मर्नु उल्लंघन करवाथी प्राप्त थाय छे, अने जे शत्रुओने नमन करवाथी प्राप्त थाय छे, ते अर्थों मने प्राप्त न थाओ.अर्थात् तेवा अर्थाने हुं इच्छतो नथी."
आ प्रमाणे उपधाननो अनादर करवा अग्रेसर एवा ते ऋषभ