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(३७) मां आवे, तो पुण्य क्रियाओने परस्पर बाध थाय; अने तेम थर्बु युक्त नयी. केमके सर्व पुण्य क्रियाओ परस्पर बाधारहितज करवानी कही छे. ते विषे श्रीओधनियुक्तिमां को छे के-"जिनशासनने विषे दुःखना क्षयनेमाटे प्रयोग करेलो (कहेलो) धर्मक्रियानो सर्व योग अन्योन्य बाधारहित असपत्न (कोइने बाधा यया विनाज) करवानो को छे." "मोक्षना कारणमां काळनो विभाग करवो अयोग्य छ " एवी शंका पण न करवी, केमके साधुओने आहार विहारादिक पण मोक्षनुंज कारण छे, छतां आगममां तेनो काळ विभाग कहेलो छे के"त्रीजी पोरसीमां भक्त पाननी गवेषणा करवी." कोई गुरु शिष्यने शिक्षा आपे छे के-“हे साधु ! तुं अकाळे गोचरी करे छे, काळने
ओळखतो नथी अने आत्माने क्लेश पमाडे छे, तेथी देशनी पण निंदा करे छे." वळी निशीथचूर्णिमां आ प्रमाणे कर्तुं छे–“ ऋतुबद्धकाळे विहार करवो, पण वर्षाऋतुमां न करवो. अथवा दिवसे विहार करवो, पण रात्रे न करवो. अथवा दिवसे पण त्रीजी पोरसीए विहार न करवो, बाकीनी पोरसीमां करवो."
लौकिक शास्त्रमा पण कर्तुं छे के-“ पहेला पहोरमां भोजन क. वू नहीं, अने बे पहोरने उल्लंघन करवा नहीं. कारण के पहेला 'पहोरमां भोजन करवाथी रसनी उत्पत्ति थाय छे, अने बे पहोर उल्लंथन करवाथी बलनो क्षय थाय छे." "ग्रीष्म अने हेमंत ऋतुना मळीने आठ मास मुधी भिक्षुए विहार करवो अने सर्व जीवोपरनी दयाने माटे वर्षाऋतुमा एकत्र निवास करवो."