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( २३८ )
॥ उजमणानो विधि. ॥
कोइपण प्रकारना तप संबंधी फळनी वृद्धि माटे उद्यापन करवानी आवश्यकता छे. उद्यापन ( उजमणुं ) करवाथी तपनुं फळ वृद्धि पामे छे. अन्य दर्शनोमां पण तपनुं उद्यापन करवानी प्रवृत्ति छे. उजमणं तप पूर्ण थया पछी करवामां आवे छे तेमज तपना मध्यमां पण करी शकाय छे. तप पूर्ण थया पछी पण ज्यां सुधी उजमणं करवानी जोगवाइ प्राप्त न थाय त्यां सुधी केटलाक भव्यो तप करवानुं चालु राखे छे अने पहेली जोगवाइए अवश्य उजमणुं करे छे.
उजमणुं करवामां सारां शक्तिवाळा - श्रीमंत गृहस्थ तो पोते एकलाज करे छे. अने ते प्रसंगे कोइपण तीर्थनी के समवसरणनी रचना करी अठ्ठाइ महोत्सव करे छे. अने स्वामीवात्सल्यादि पण पोतेज करे छे. बीजा सामान्य स्थितिवाळाओ ते प्रसंगनो लाभ लइने पोते करवा धारेला एक बे के पांच छोड तेनी साथेनी वस्तुओ सहित ते मंडपनी अंदरज पधरावे छे.
उजमणुं करवामां मुख्य तो चंदरवो, पुठीयुं, तोरण ने रुमाल - अतलस, साटम, कीनखाब, लपेटो अथवा झीक चळक विगेरेना भरावीने कराववामां आवे छे. उपरांत बीजी जे जे वस्तुओ मुकवामां आवे छे तेमां ज्ञान, दर्शन ने चारित्रना उपकरणो मुकवामां आवे छे. तेनी अंदर जो ज्ञानना आराधन निमित्तनुं उजमणं होय छे तो ज्ञानना उपकरणों, दर्शनना आराधन निमित्तनुं होय तो दर्शनना उपकरणो अने चारित्रना आराधन निमित्तनुं होय तो चारित्रना उपकरणो