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(२३१) जाणे छे. विजयलक्ष्मी गुणना निधन एवा ते परमात्माना चरणकमलने हुं नमस्कार करु . ॥९॥
॥ श्रीमनःपर्यवज्ञानना स्तवननो अर्थ ॥
श्रीजिनेश्वर अरिहंत भगवान पोतपोताना ज्ञान (अवधि ) थी संयमना अवसरने जाणे छे. ते वखत लोकान्तिक देवताओ आवी मानपूर्वक ' हे नाथ ! तीर्थ प्रवर्त्तावो' ए प्रमाणे कही प्रभुने नमस्कार करे छे. (पछी प्रभु ) छ 'अतिशयवाला वार्षिक दानने
१ तीर्थकर महाराजा यद्यपि अनंत बलना धणी छे, तोपण भक्ति होवाने लीधे प्रभुने श्रम न थाय माटे, दान आपती वखते सौधर्मेन्द्र प्रभुना हाथमां द्रव्य आपे छे ॥ १॥ चोसठ इन्द्रो शिवाय बीजा देवोने दान लेता निवारवा माटे तथा लेनारना भाग्यमां जेवू होय तेवुज तेना मुखमांथी बोलाववा (प्रार्थना कराववा) माटे ईशानेन्द्र सुवर्णयष्टि लइ प्रभु पासे उभा रहे छे ।। २॥ प्रभुना हाथमा रहेला सोनयामां चमरेन्द्र अने बलीन्द्र लेनारनी इच्छानुसार न्यूनाधिकता करे छे एटले के याचकनी इच्छाथी (भाग्यथी) अधिक होय तो न्यून करे छे अने न्यून होय तो अधिक करे छे ॥शा भरतखंडमां उत्पन्न थयेला मनुष्योने बीजा भुवनपतिओ दान लेवा माटे दूर दूरथी खेंची लावे छे ॥ ४ ॥ दान लइ पाछा वलनार लोकोने व्यन्तर देवो निर्विघ्नपणे स्वस्वस्थाने पहोंचाडे छे ॥५॥ ज्योतिष्क देवो विद्याधरोने दाननो समय जणावे छे ॥ ६ ॥