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( २२६) काउसग्गमा हास्य आववाथी नाश पाम्यो हतो. ॥ ३॥ अवधिज्ञानी जघन्यथी अनन्ता रूपी द्रव्यने सामान्य विशेषोपयोगे जाणे देखे छे. उत्कृष्टथी सर्व मूर्त्तिवन्त पुद्गल वस्तुने जाणे छे ॥४॥ (द्रव्यथी.१)।। क्षेत्रथी जघन्यमा जघन्य अंगुलना असंख्यातमा भागने देखे ( एटले के) तेटला क्षेत्रमा जे पुद्गल स्कन्धो छे तेने जाणे अने देखे ॥५॥ उत्कृष्टथी ( चौदराज ) लोकना प्रमाण जेवडा अलोकमां असंख्याता खांडवा(भागो)देखे,(२)॥ कालथी जघन्यपणे आवलिकानो असंख्यातमो भाग देखे, ॥६॥ उत्कृष्टथी असंख्याती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी भूत भविष्यत् कालने जाणे देव,(३)॥ हवे भावनो विचार सांभलो.॥७॥ जघन्यथी एकेका द्रव्यमां चार (रूप, रस, गन्ध, स्पर्श ) भावो (पर्यायो) देखे, उत्कृष्टथी प्रत्येक द्रव्यमा असंख्याता पर्यायो जाणे(४) ॥८॥ आ (द्रव्यथी, क्षेत्रथी, कालथी, भावथी) चार भेदो संक्षेपथी नन्दीसूत्र बतावे छे. जेओ ज्ञाननी भक्तिमा रमणता करे छे तेओ विजय लक्ष्मीरूप देवीने प्राप्त करे छे. ॥ ९॥
॥श्री अवधिज्ञानना स्तवननो अर्थ. ॥ ... हे प्राणिओ ! तमे अवधिज्ञाननी पूजा करो, सम्पग्दृष्टि जीवोने आ गुण (अवधि) थाय छे, सर्व तीर्थंकरो आ ( अवधि ) ज्ञान सहित जन्म लइने मनुष्य भवसंबन्धी मोटा उदयने देखे छे. (पामे छे.)॥ १॥ (असंख्याता द्वीप समुद्र छतां ) सातज द्वीप अने सातज