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(२०६ ) आ ज्ञाननी लब्धि जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त काल रहेछे अने उत्कृष्टथी छासठ सागरोपम अने मनुष्य भवो अधिक, एटलो काळ रहेछे. अने घणा प्रकारना जीवोनी अपेक्षाए अन्तर ( विरह ) कोइ दिवस पण होतो नयी ॥ १॥ ( जघन्यथी ) वर्तमान समये आज्ञान पामनारा तिपद्यमान नही १३. भाषकद्वारे भाषा लब्धिवाला प्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यान भजना १४. परित्तद्वारे प्रत्येक शरीरी प्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान भजना. साधारण उभय नही १५. पर्याप्तिद्वारे पर्याप्ता प्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान भजना. अपर्याप्ता पूर्वप्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान नही ११. सूक्ष्मद्वारे सूक्ष्म उभय नही. बादर प्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान भजना १७. संज्ञिद्वारे संज्ञि पूर्वप्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान भजना. असंज्ञि पूर्वप्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान नही. १८. भवसिद्धिकद्वारे भवसिद्धिको संज्ञि माफक,. अभवसिद्धिको उभयशून्य १९. चरमद्वारे चरम पूर्व प्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान भजना. अचरम उभयशून्य २०.॥ इति सत्पदमरूपणा ॥१॥ द्रव्य प्रमाणमा प्रतिपद्यमान होय अथवा न होय, होय तो जघन्यथी एक बे अथवा त्रण, उत्कृष्टथी क्षेत्रपल्योपमना असंख्यातमा भाग प्रमाण प्रदेशराशि जेटला. प्रतिपन्न जीवो जघन्यथी पण क्षेत्रपल्योपमना असंख्यातमा भाग प्रमाण प्रदेश राशि जेटला, उत्कृष्टथी एथी विशेषाधिक ॥२॥ क्षेत्रद्वारे सर्व मतिज्ञानीओ लोकना असंख्यातमा भागमा रहेछे. एक जीव इलिकागतिए उपर अनुत्तर विमानमा जतो अथवा त्यांची आवतो चौदीया सात भागमा रहे छे. नीचे छठी पृथ्वीमा जतो अ