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(२०४) भेदोए करी तथा कारण कार्यना संबंधी ते बेनो भेद छे. कांचन अने कलशना सम्बन्धनी माफक मति साधन छे अने श्रुत साध्य छ। ८।। परमेश्वर परमात्मा सर्व सिद्ध भगवन्तो मतिज्ञान पामीने केवळ ल. क्ष्मीना भंडार थया छे. ॥ ९ ॥
॥ मतिज्ञानना स्तवननो अर्थ, ॥ हे सुज्ञ भव्य माणीओ ! तमे पंचमीने दिवसे ज्ञानने नमस्कार करो के जे ज्ञान जगतमां गाजी रहुं छे, वली शुभ उपयोगमा रहेतां क्षणवारमां मिथ्यात्वथी संचित थयेली कर्मरज निर्जरी जाय छे ( आत्माथी छुटी पडे छे) ॥शा 'सत्पद प्ररूपणता विगेरे नव द्वा
१ सत्पद प्ररूपणामां गति विगेरे वीश मार्गणाओए करी मतिरूपी सत्पदनी प्ररूपणा करवी. तेमां गतिमार्गणामां कयीकयी गतिओमां मनिज्ञान पामेला तथा पामता जीवो होय ? चारे गतिओमां मतिज्ञान पामेला जीवो होय, पामता जीवो कोइ वखत होय तथा कोइ वखत न हाय १ इन्द्रिय मार्गणाए पंचेंद्रियजीवो पूर्वप्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमाननी भजना जाणवी. विकलेन्द्रियो पूर्वप्रतिपन्न होय. ( सिद्धान्तकार ना मते, कार्मग्रन्थिकमते उभय पण न होय ) एकेन्द्रियोमा एके पण न होय २. कायमार्गणाए त्रमकायमा पूर्वप्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान भजना. पृथ्वीकायादिमा उभयाभाव ३. योगमार्गणाए समुदित त्रणे योगोमां पंचेन्द्रियनी माफक, मनोरहित वचनयोग विषे विकलेन्द्रियनी माफक, केवल काययोगमा उभयाभाव ४. वेदद्वारे त्रणेवेदोमां पूर्वप्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान भजना ५. कषायद्वारे अनन्तानुवन्धिमा