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अमूर्त भाव प्रगटपणे ए, जाणे श्री भगवंत ।
चरण कमल नमुं तेहना, विजय लक्ष्मी गुणवंत ॥ ३ ॥ इति चैत्यवंदन ॥
॥
पछी नमुध्धुणं० ॥ कहीए ते आ प्रमाणे
जावंति० ॥ नमोऽर्हत्० || कही स्तवन
॥
अथ स्तवन ॥
॥ जोरेजी ॥ ए देशी ॥
जीरे मारे श्री जिनवर भगवान, अरिहंत निज निज ज्ञानथी | जीरेजी || जी० ॥ संयम समय जाणंत, तव लोकांतिक मानथी । जीरेजी ॥ १ ॥ जी० ॥ तीर्थ बर्तावो नाथ,
इम कही प्रणमे ते सुरा ॥ जीरेजी ॥ जी० ॥ षट् अतिशयवंत दान,
इने हरखे सुर नरा || जीरेजी ॥ २ ॥ जी० ॥ इण विध सावे अरिहंत, सर्व विरतिं जब उच्चरे ॥ जीरेजी ॥ जी० || मनःपर्यव तत्र नाण, निर्मल आतम अनुसरे || जीरेजी ॥ ३ ॥ जी० ॥ जेहने त्रिपुलपति तेह अप्रतिपातीपणे उपने ॥ जीरेजी ॥