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ऋषभादिक चऊवीश जिणंदना रे, नमे प्रभुपद अरविंद रे || पूजो ० || ४ || अवधिज्ञानी आणंदने दीए रे, मिच्छामि दुक्कड गोयमस्वामि रे ॥ वरजो आशातन ज्ञान ज्ञानी तणी रे, विजयलक्ष्मी सुख धाम रे || पूजो ०||५|| ॥ इति अवधिज्ञान स्तवन ॥
पछी जयवीयराय कही खमासमण दइ, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अवधिज्ञान आराधनाथ करेमि काउस्सगं ||
वंदण० ॥ अन्नत्थ० || एक लोगस्स अथवा चार नवकारनो काउस्सग्ग करी पारीने थोय कवी ते नीचे प्रमाणे॥ अथ थुई ॥
॥ शंखेश्वर साहिब जे समरे | ए देशी ॥
ओहि नाण सहित सवि जिनवर, चवी जननी कूखे अवतरु । जस नामे कहीए सुख तरु, सवि इति उपद्रव संहरु |
हरि पाठक संशय संहरू, वीर महिमा ज्ञान गुणायरु । ते माटे प्रभुजी विश्वभरु, विजयांकित लक्ष्मी सुहंकरु ॥ १ ॥ ॥ इति स्तुति. ॥
पछी खमासमण दइ उभा रही अवधिज्ञानना गुण वर्णववाने दुहा कहेबा ते कहे छे.
॥ दुझ ॥
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असंख्य भेद अवधिता, षट् तेहमां सामान्य || क्षेत्र पनक़ लघुथी गुरु, लोक असंख्य प्रमाण
॥ १ ॥