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दुःखमा नांख्या छ, अने आ राजानुं मरण थयेथी आपणे जलदी छूटी शकीए खरा. कारण के नवो राजा राज्य मळवाथी समन केदीओने छोडी मूके छ अने केदीओने छोडया पछीज नवा राजाने अभिषेकोत्सव करवानो रीवान छे; ए सिवाय बीजी रीते आपणे छुटीए तेवु कोइ प्रकारे जणातुं नथी. वळी आज्ञाभंगनो आक्षेप करनार अने अत्यंत क्रोधायमान थयेलो आ राजा आपणने कोण जाणे केवी कदर्थना पमाडशे ? तेनी खबर पडती नथी. कहुं छे के-" राजाओनी आज्ञानो भंग, महा पुरुषना माननुं खंडन, अने ब्राह्मणनी वृत्ति ( जीविका )नो नाश, ए शस्त्रविनानो वध कहेवाय छे. " आ प्रमाणे होवा छतां पण जगत्ना जीवनरुप आ राजा चि. रकाळ सुधी जीवतो रहो. बीजा जीवन पण आनिष्ट चिंतवतुं योग्य नहीं, तो राजानु अनिष्ट शी रीते चितववालायक होय ? वळो आपणने जे आ दुःख प्राप्त थयु छे, ते तो आपणाज दुष्कर्मे थयेटु छे, तेमां आ राजानो काइपण दोष नथी. जो एम न होय तो आ हुंशीयार राजा परीक्षा कर्या विना आम केम करे ? को छ के-" सर्व जीवो पोताना पूर्वे करेलां कर्मोना फळविपाकने पामे छे; तेमां अपराध ( हानि ) अथवा गुण ( लाभ ) करवाने विषे बीजो तो निमित्तमात्र ज छे. " ज्यारे कर्म बळवान् होय छे त्यारे अचिंत्योज मर्मस्थानमा घा वागे छे. अने ते वखते प्राणनुं रक्षण करनार कोइपण यतुं नथी. तेमन काइ पण आधार के विचार पण काम आवता नथीः तथा आपणा कर्मना वशथी आपणुं जे थवान होय ते थाओ, परंतु आ राजानुं तो सर्वथा शुभन थाओ, एटलाथीज आपणने सर्व रीते संतोष छे.".