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(१६७) त्रिशला उर सुखकंदरे
॥ ९० ॥ १॥ महावीरने करूं वंदना
॥ ९० ॥ ए आंकणी ॥ पंचमी गतिने साधवा ॥ हु० ॥ पंचम नाण विलासरे ॥ हुं० ॥ महानिशीथ सिद्धांतमा ॥ हुं० ॥ पंचमी तप प्रकाशरे ॥ ९० ॥२॥ अपराधी पण उद्धर्यो । हुं० ॥ चंडकोशिओ सापरे ॥हुं० ॥ यज्ञ करंता बांभणां ।। हुं० ॥ सरखा कीधा आपरे ॥ हुं० ॥३॥ देवानंदा ब्राह्मणी ।। हुं० ॥ रिखभदत्त वली विप्ररे ॥ हुं० ॥ ब्यासी दिवस संबंधी ।।हुं। कामित पूर्यो क्षिप्ररे ॥ हुं० ॥४॥ कर्म रोगने टालवा ॥ हुं० ॥ सवि औषधनो जाणरे ॥९० ॥ आदर्या में आशा धरी ।हुं०॥ मुज उपर हित आणरे ॥ हुं० ॥५॥ श्री विजयसिंह सूरीशनो ।। ९० ॥ सत्यविजय पन्यासरे ॥ हुं० ॥ शिष्य कपूरविजय कवि ।।हुं०।। चंदकिरण जस जासरे ॥हुं०॥६॥ पास पंचासरा सानिधे । हुं० ।। खिमाविजय गुरु नामरे ॥ हुं०॥ जिनविजय कहे मुज हजो ॥हुं०॥ पंचमी तप परिणामरे ।हुं०॥७॥
॥कळश ॥ इम वीर लायक विश्वनायक, सिद्धिदायक संस्तव्यो । पंचमी तप संस्तवन टोडर, गुंथी जिनकंठे ठव्यो । पुण्य पाटण क्षेत्रमाहे, सत्तर त्राणुं संवत्सरे ॥ श्री पार्श्व जन्म कल्याण दिवसे, सकल भवि मंगल करे ॥११॥इति॥