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श्री यशोविजयोपाध्यायादि विरचित नवपदनी पूजामांथी
॥ सम्यग् ज्ञानपद पूजा. ॥ ॥ काव्यं, इंद्रवज्रा वृत्तम् ॥
अन्नाण संमोह तमोहरस्स, नमो नमो नाण दिवायरस्स ॥ ॥ भुजंग प्रयात वृत्तम् ॥
होये जेहथी ज्ञान शुद्ध प्रबोधे, यथावर्ण नासे विचित्रावबोधे ॥ ते जाणीए वस्तु षड्द्रव्य भावा, न हुये वितत्था ( वाद ) नीजेच्छा स्वभावा ॥ १ ॥
होये पंच मत्यादि सुज्ञान भेदे, गुरूपास्तिथी योग्यता तेह वेदे ॥ बळी ज्ञेय हेय उपादेय रूप, रहे चित्तमां जेम ध्वांत प्रदीपे ॥ २ ॥ ॥ ढाल ॥
॥ उलालानी देशी ॥
भव्य ! नमो गुण ज्ञानने, स्वपर प्रकाशक भावेजी ॥ परजाय धर्म अनंतता, भेदाभेद स्वभावेजी ॥ १ ॥ ॥ उलालो ॥
जे मुख्य परिणति, सकल ज्ञायक, बोधभाव विळच्छना ॥ मति आदि पंच, प्रकार निर्मल, सिद्धसाधन लच्छना ॥ स्याद्वाद संगी, तत्त्वरंगी, प्रथम भेदाभेदता ॥ सविकल्प ने, अविकल्प वस्तु, सकल संशय छेदता || २ ||