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( १४८ ) मुनिमहाराजश्री आत्मारामजीकृत वीशस्थानकनी
पूजामांथी ॥ज्ञानपद पूजा ॥
॥दोहा॥ निज स्वरुपके ज्ञानसें, परसंग संगत छार ॥ ज्ञान आराधक प्राणिया, ते उतरे भव पार ॥१॥
॥ राग भैरवी-अजमेरी ताल-पंजाबी ठेको ॥ ॥ लागी लगन कहो केसें छूटे, प्राणजीवन प्रभु प्यारेसें॥ ए देशी।। ज्ञान सुहकर चिद्घन संगी, रंगी जिनमत सारे। रंगी० ॥ ज्ञान०१॥ पांच एकावन भेद ज्ञानके, जडता जगजन टारेमें ॥ जड०॥ज्ञान०२॥ भक्ष्य अभक्ष्य विवेचन कीनो, कुमति रंग सब डारेमें||कुम०ज्ञान०३॥ प्रथम ज्ञान ने पछी अहिंसा, करम कलंक निवारेमें ।।कर०॥ज्ञान०४॥ सदसद् भाव विकाशी ज्ञानी, दुर्नय पंथ विसारेमें ॥दुन०॥ज्ञान०५॥ अज्ञानीकी करणी एसी, अंक विना शून्य सारेमें ||अंक० ॥ज्ञान०६॥ मति श्रुत अवधि मनःपर्यव है, केवल सर्व उजारेमें ॥केव०॥ज्ञान०७॥ अज्ञानी वर्ष एक कोटिमें, करम निकंदन भारेमें ॥कर० ॥ज्ञान० ८॥ ज्ञानी श्वासोश्वास एकमें, इतने करम विदारेमें ॥इत० ॥ ज्ञान० ९॥ भरतेश्वर मरुदेवी माता, सिद्धि वरे दुःख जारेमें।।सि०॥ ज्ञान०१०॥ देशविराधक साराधक, भगवती वीर उजारेमें||भग० ॥ज्ञान० ११॥ जयंत नरेश्वर यह पद साधी, आतम जिनपद धारेमें।आत ज्ञान०१२॥
॥ इति अष्टम पूजा ॥८॥