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रणसिंहकथा
उपदेशमालाविशेषवृत्तिः|
फारक फरकहिं सुहडवम्गि, धाणुकियदुक्कहिं तदणुमग्गि । बरभल्लभल्लिबावल्लसेल्ल, पेल्लंति वीर एकल्लमल्ल ॥ २०७ ।। तो छत्तचिंधधयवड पडंति, कुंताहयकुंजर आरसंति । भडभालभिउडीउब्भड भिडंति, सिरपाणिपायपाडिय पडंति ॥ २०८ ॥ करिनरहं मुंडरुंडई मिलंति, अपुरुव्वसिट्ठि उद्विय कहंति । धडधावहिं उक्खयखेडखग्ग, हुंकारु करहिं सिर धरणिलग्ग ।। २०९ ।। उत्तालतालवेयाललक्ख, किलकिलहिं भूयभेसहिं अलक्ख । फिकारफारफेर विफुरंति, डकारहिं २डाइणि हडहडंति ॥ २१० ॥ एरिसइ महारणि भगइ भडगणि अत्थमियउ चारहडिगुणु । चिंतामणि झाइओ अग्गहं ठाइउ रणकुमारु उठेइ पुणु ॥ २११ ॥ मंडलियचंडकोदंडदंडपामुक्कसरपहारेहिं । रणसीहो रायबले करेइ वट्टाई कोट्टाई ।। २१२ ॥ मुंडेइ मत्थयाइं दाढाओ दाढियाओ उक्खणइ । कप्परइ कन्ननासा, नीसंको सिक्करोओ य ॥ २१३ ॥ जीवाउ चावाणं लुणेइ खग्गाण खंडए मुट्ठी। फरए फारकाणं फाडइ फोडइ गुडाओ वि ॥ २१४ ॥ अह बंधिऊण आणइ पाडइ पाएसु पायर्ड भीमं । आयासबंधबद्धं धरेइ ससुरं रहारूढं ।। २१५ ॥ तो निश्चलमञ्चंतं चंचापुरिसं व पेक्खिऊण निवं । पयडेइ पुत्तिगाए सुमंगला सव्ववुत्तंतं ।। २१६ ।। नववहुवेसा एसा अवगयआगा-४ | सपासतायस्स । पाएसु पडइ भीमं मोयावइ लज्जमाणमुही ॥ २१७ ॥ रणसीहो जोहारइ पाणी पिट्ठीए देइ नरनाहो । कुमरस्स कुलकमविक्कमाइ जाणित्तु संतुट्ठो ॥ २१८ ॥ महया विच्छडेणं विवाहूसवविहाणओ रन्ना । सकरेण सुया सीहिव्व अप्पिया सीहकुमरस्स ॥ २१९ ॥ हरिसभरनिन्भरंगीए तीए सद्धिं दिणाणि कइवि तहिं । अच्छिय कमलवईए सह चलिओ आगओ सगिहं | ॥ २२० ।। न उणो रयणवईए परिणयणत्थं गओ स सोमाए । कमलवईलाभेणं मुंणिउं कयकिञ्चमप्पाणं ॥२२॥ मन्नंताणं ताणं वावारं तखणंपि पच्चूहं । विसयसुहामयसित्ताण, कोइ कालो अइक्कमइ ॥ २२२ ॥ अह रयणवई चिंतेइ सुहओ सोहम्गिओ स रायसुओ। आगच्छंतो वलिउं गओवि किं अजवि न एइ ।। २२३ ॥ हुं विनायं जाउड पंडिया कावि सा खलु यासा । तिक्खकडक्खखेवेण जीए स जडो वसं नीओ ।। २२४ ॥ निब्भर भरिए हियय॑मि तीए तस्सस्थि मज्झ नोगासो। न बहिं दुलइ
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