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उपदेशमालाविशेषवृत्ती
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कपटेन अभयापहरणम् ।
॥३४६॥
थेरा यर अभयं । गणिमण। संजायनिक
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रय अभयास्याओ कमेधा पट्टणगामा
अग्गिणा जलेण पुणो । मूलाउ जंति तह जंति, सत्तुणो निम्मलमईए ॥५२॥ अणुमग्गलग्गसेणियराएणासाइ से कयं सकरे ।। उज्जेणिपुरि पत्ता, ते तो तं पत्तियावंति ॥ ५३ ॥ सामि ! न अम्हे एयस्स, कारिणो जाण अभयचरियमिणं । संजायनिच्छओ अन्नयाओ सो भणइ अत्थाणे ॥ ५४ ॥ सो कोइ नस्थि मइमं, जो आणिज्जा ममंतिए अभयं । गणियाए एगाए, पडिवन्नं दिज्जउ परं मे ॥ ५५ ॥ संजोगे तो दिन्ना, वेसाओ सत्त मज्झिमवयाओ । थेरा य नरा साहिज-कारिणो संबलं च बहुं ॥५६।। संजइमूले गंतूण, कवडसड्रिढत्तणे कयब्भासा । पारद्धा पट्टणगामनगरदेसेसु परिभमिउं ॥ ५७ ।। देवे वंदति विसेसओ य तन्नयरगामिमुणिसडूढे । जायाओ विस्सुयाओ कमेण पत्ताउ रायगिहे ।। ५८ ॥ बाहिं उज्जाणंमि, ठियाउ तच्चेइयाइं वंदेउ । लग्गाओ घरचेइयपरिवाडीए य अभयस्स ॥ ५९॥ घरमइगया निसीहियपुव्वं विहीए घरपवेसंमि । उम्मुक्कभूसणाओ, दट्टु अब्भुदिओ अभओ ॥ २६० ।। संतुद्वेणं पुढे, सागयमिह भो निसीह्यिाएत्ति । घरचेइयाणि उवदंसियाणि विहियं च वंदणयं ॥ ६१ ॥ तो अभयं वंदित्ता, आसीणाओ य आसणेसु कमा । भयवंताणं तित्थंकराण जम्माइभूमिसु ॥ ६२ ॥ विणओणमियसरीरा, जिणपडिमाओ परेण विणएण। वंदावंति कहंति य, पुढाओ जहा अवंतीए ॥ ६३ ।। अमुगवणियस्स भज्जाओ, तस्स मरणे समुग्णयविरागा। अम्हे पव्वइउमणा, वंदामो चेइयाणि जओ ॥ ६४ ॥ पव्वइयाहिं पढणाइकजवक्खेवओ न तीरंति । ताइ वंदिउमभएण, भूरिभावेण तो भणियं ॥ ६५ ॥ अन्ज महं पाहुणिया, होह पभासंति ताकओवासा । अजऽम्हे सुचिरं अच्छिऊण कयकोमलालावा ।। ६६ ॥ नियठाणंमि गयाओ, अभओ तासि गुणेहिं अक्खित्तो । बीयदिणंमि पभाए, एगागी तुरयमारूढो ॥६७। तासि समीवंमि गओ, भणइ गेहे मज्झ कुणह पारणयं । तुब्भे ताव इहं चिय, पारणयं कुणह इय भणिओ ॥ ६८ ॥ सो ताहिं, चिंतइ इमं, मह गेहं निच्छियं न एहिंति । जइ न भणियाणुवित्ति, करेमि तो पजिमिओ तत्थ ॥ ६९ ॥ संमोहकारि बहदव्वजोइयं पाइओ मई तत्तो। सुत्तो आसरहेणं, पलायमाणो कओ झत्ति ।। २७० ।। अन्ने वि रहा मग्गे, पुवि ठविया परंपरेणेसो। उज्जेणि आणीओ, पणामिओ सामिणो तीए ॥ ७१ ।। भणिओ तेण कहिं ते, पंडिच्चं जेण जगमिणं नडियं । धम्मच्छलेण
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॥३४६॥