________________
उपदेशमालाविशेषवृत्तौ|
अवन्तिसुकुमालसन्धिः ।
॥ २६२॥
CCORDCORDCORRCODECORDCORDCROR
सुकुमारो-माईवोपेतः, सुखोचितो-लालितेन्द्रियस्तेषां कर्मधारये तृतीया तेन शालिभद्रेण ॥ ८६ ॥ ८७ ॥ न चैतदाश्चर्य यदयं देहमेवं विशोषितवान् । यस्मादस्मादपि दुष्करकष्टनिष्टप्तवपुष्टराः साधवः श्रूयन्ते इत्याह-"दुक्कर" गाहा । कथामाख्याय गाथा व्याख्यास्यतेइह अत्थि नयरि नामिण अवंति, जहिं तुंगचंगचेइय सहति । तह ताण पुरउ सुपयट्ट नट्ट, चचर-चउक-चउहद-हट्ट ॥१॥ कणकणिरकणयकिकिणिसएहिं, मरुलहरिपहल्लिरपल्लवेहिं । जा हसइ सव्विपुरपायडेहि, तह तजइ सज्जिय धयवडेहिं ॥२॥ वरकणयझलक्किरकुंभवार, पसरंतनेत्तदिष्पंततार। अणुरत्तचित्त जा हावभाव, कुणइ व नियंती बहुपयाव ॥३॥ घरि बारि हट्टि जहिं सेउ संति, सूरिहिं पहावि पहवइ न भंति । गउरवियहिं नियनियमम्गिलग्ग, पसरियपहावदसणसमग्ग ॥४॥
जहिं सिप्पमहानइ अणुदिणु पवहइ तुंगतारपायारतलि । तिहुयणविक्खाई सच्चियखाई लोइयतित्थु पसच्छु कलि ॥५॥ | सिरि अजसुहत्थि सुहत्थि तित्थु, पत्तउ पवित्तु जंगमु जु तित्थु । अविचलियचारुदसपुव्वधारि, विहरंतु अणिस्सियसुहविहारि ॥ ६ ॥ जीवंतसामिपडिमाए पायपंकयपणामसेवा सुहाय। संघाडउ पेसिउ पुरिहिं सावि(मि), वरवसहि जाहि जोयहि सुठावि(मि) ॥ ७ ॥ सामंतमंतिसत्थाहगेहि, सो मग्गइ सूरिहि वसहि देहि । सत्थाहि अस्थि भद्दाभिहाण, गिह दाविय तीए महप्पमाण ॥ ८ ॥ जं अज्जसुहत्थि हि उवगरेइ, तं लेहु तुम्हि इय वजरेइ। उवगरियगरुयघरघंघसाल, जइजुयलिहि ताहि महाविसाल ॥ ९॥ तसपाणबीयपसुपंडगॉइ, परिचत्त गुरु हसा कहिय जाइ॥ तओ तेण सुसारिण सहुं परिवारिण अज्जसुहत्थि सुहत्थिगइ। भद्दाघरि आवहिं अणुजाणावहिं वसहिं सुसंवुडसुद्धमइ ॥१०॥ सत्थवाहि भदाहि तणुब्भवु, तीसु आसि उल्लासि मणोभवु । तरुणरमणि मणमोहणु अंगिहि, सार तार तारुन्नतरंगिहि ॥११।। कजलकालअरालसुकोमल, तसु सोहग्ग महासरिसेवल । केससीससरसीरुहिसुंदर, सोहहिं नं भमरालि निरंतर ॥१२॥ मुहमयंकमंडलिगंडत्थल, सहहिं रेनाइ फालिह दप्पणतल । सुरगिरिसिलविसालु वच्छत्थलु, रइवइसारिवट्ट नं२ निम्मलु ॥१३॥
१ सारंग C. DI २ नाइ-नं इवार्थे ।
OncomeKCRecemERRCORREExave
॥२६२॥