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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ|
शालिभद्रमहर्षिसन्धिः ।
॥२६०॥
सालिभद्दो य धन्नो य दोवि हु मुणी, पढियएक्कारसंगा असंगा मुणी । भुवणदीवेण देवेण सद्धिं सया पुहवि विहरंति सह चेव सच्चे रया रसपरिचाय-मासोववासे ठिया, दोत्तिचउपंचमासोववासप्पिया । पसमसज्झायसज्झाणसद्धाविही, कटुणुद्वाणनिद्वाहनिद्वानिही ॥४॥ सुसियरसरुहिरवसमंसमजामया, जाय ते सुक्ककीकससिरा चम्मया ॥छ।। अह वीरजिणेसरि सहुं परमेसरि विहरमाण आणंदभरि । पत्ता परिवारिहिं कम्मह धाडिहि तहिं जि रायगिहवरनयरि ॥७५।। मासखवणपारणइ पहुत्ता, जाव जाहिं विहरणह तिगुत्ता । ताव सालि जंपिउ परमेसरि, माउहत्थि तुहु विहरिसि सुहकरि ॥७६।। गोचरिय घरिघरि विहरता, दोविति भद्दघरंगणि पत्ता। सा पुण सुयदसण उत्कंठिय, बहुपरिवारिय वंदण चल्लिय ॥७७|| | तुरिय तुरिय ते सव्वि पहुचहि, न ति अंगणि उब्मा ओलक्खहि । वलिय जाव पहुपासि ति आवहि, पहि महियारि दिवा तावहिं ॥७८।। पसरिय पीइराय रोमंचिय, पुणु पुणु पणमिय बाह पवंचिय । भरियएगथाली उप्पाडइ, झरियउरोरुह दहि विहरावइ ॥७९।। जइवर सव्वसुद्धि परिभावहि, हिउ गुणसहिउ दहिउ पडिगाहहिं । जाइ सालि तो पुच्छइ सामिउं, हउँन अज्जु माइहिं विहराविउ ॥८॥ पहु पभणेइ जीए दहि दिनउ, गयभवमाइ तुज्झ सा निच्छउ ॥छ।। तो तस ईहंतह जिणु पणमंतह, जाई जाईसरणमइ । अह सा कम्मारी निय महंतारी वच्छवालु अप्प मुणइ ॥८॥ सालिभहि जा तक्खणि लक्खिउ, नियभवु पुव्वु तिक्खदुक्खंकिउ । अवचियमेयमंसमज्जा लहु जाणिउ नियसरीरु अइनीसहु ॥२॥ ता दहि पारिवि माइ जु दिन्नउ, अणसणु स कुणइ अरु मुणि धन्नउ । वीरजिणिदि बेवि अणुमन्निय, तक्खणि पिउवणि पत्तगुणन्निय ॥८३॥ पाओवगमसमाहि थिरावहिं, परपरमत्थि तित्थु मणु ठावहिं । एत्थंतरि पहुपासि पहुत्ती, सत्थवाही वहुयाहि समित्ती ॥८४॥ देवदेउ वंदेविणु पुच्छइ, सालिभद्दु सामिय ! कहिं अच्छइ । नाहु कहेइ गेहि गउ हुंतउ, तुज्झु धनि धन्नई सहु संतउ ॥८५।। खणु गेहंगणि थक्कु निरुब्भउ, पुणु परियाणिउ पई नहु निब्भउ। पुव्वजम्मजणणी विहराविउ, पहि महियारी दहि पाराविउ ॥८६॥ | गउ मसाणि खामेवि सुनीसरि, गुरुगिरिकंदराहिं जिव केसरि ॥छ।।
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