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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ ॥ २५८॥
शालिभद्रमहर्षिसन्धिः ।
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सो एउ निसामिउ अम्हवि सामिउ अवरु कोइ इय दुम्मणउ । घरतलि आवेविणु वर ढोएविणु ढोयणीउ पाइहि पणउ ॥४४॥ रयणाभरण भूरि वियरेविणु, सेणिगु नियउच्छंगिं करेविणु। महुरालावि भावि बोल्लावइ, पुणु तणुफासु तासु दुक्खावइ ।।४५|| मलियमालमालइ हि मिलायइ, जिव तिव तणु तसु तक्खणि जायइ। चलवलंतु सो पिक्खिवि तावहि, भणइ स पुत्तु ! जाउ नियठावहिं ॥४६॥ अह धारागिरिमंदिर पत्तहिं, मजणकेलिविलासु करंतहिं । मुद्दारयणु जलंतरि पडियउ, जोयंतहवि न तसु करि चडियउ॥४७॥ भद्दा भणियचेडि संचारइ, वाविनीरु ठाणंतरि धारइ । बहुरयणाभरणंतरि तं ठिउ, अंगारु व नरवरि ओलक्खिउ ॥४८॥ कारणु चत्ताभरणह पुच्छइ, नरवइ ताहं भद्द आइक्खइ । नितु बहु नवनवभूसणअंगिहिं, पहिरिय पुण इह वाविहि छइहिं ॥४९॥ तो चित्ति चमक्किउ निवु पुवक्किउ चिंतइ भद्दासुय तणउ | भद्दा आपुच्छइ मंदिरि गच्छइ पालइ रज्जु पवित्तनउ ॥५०॥ अह सालिभद्दु चिंतेइ तत्तु, हाहा हयासु हउं अइपमत्तु । नियतरुणरमणिरमणेक्कलुध्धु, नियजीविउ निष्फलु नेमि मुधु ॥५१॥ किउ सुकिउ किंपि मइं पुव्वजम्मि, तिणि तियसभोगउवलद्धधम्मि । पुणु खूणु एउ एत्तिउ मुणामि, जं महवि अन्नु संपन्नु सामि ॥५२॥ इह पुव्वभवज्जियपुण्णपाव, पवियंभहिं लंभियभूरिभाव । ता धम्मु करेवउ मई समग्गु, अपवग्गहि सग्गहि सरलमग्गु ॥५३॥ अह धम्मघोस'गुरु विहरमाणु, तहिं पत्तु 'असियनिज्झरसमाणु । सेणिउ असेससेणासणाहु, जाइवि नमेइ तो मुणिनाहु ॥५४॥ भह सालिभद्दु संपत्तु तत्थु, मुणिनाहवयणु निसुणइ महत्थु । नवनवभवंतसंवेगवेगु, पक्खालइ माणसमलु अणेगु ॥५५।। गुरु कहइ सालि पुच्छउ सभाउ, जिणसंजमि होह न पेसभाउ ॥छ।। वेरम्गनिरग्गलु आगयमंगलु, भावणभाविय सुद्धमइ, पव्वज्जसमजणि कयनिच्छउ मणि माइघरागउ विन्नवइ ॥५६।। मई माइ ! निसामिउ समणधम्मु, सिरिसूरिपासि अच्चतरम्मु । तो भंगुरभोगविरत्तचित्तु, मई मेल्लि चरउं निश्चलु चरित्तु ॥५७॥ अह भणइ माइ "मुच्छाए छेहिं, इय असणितुल्लु मा उल्लवेहि । मणनयणजीवजीवियसमाण, मह तुह विणु झत्ति पलाहि पाण ॥५८॥
१ मुणि । २ अचिन्तिओ c अवि(मि)य. B, अचिंतिउ उझर DI ३ सहाउ 0. DIY मुच्छाएहिं BI
॥ २५८ ॥