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उपदेशामलाविशेषवृत्तौ
॥ २०५।।
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सुतरुणतरणिपयासो, पलोइओ वियसियमुहेहि ॥ ७२ ॥ कमलेहिं व पुव्वोइय, दिन्नाई तावसेहिं भणियं च । तुम्हे अम्हाण गुरू, तह नियसीसा वयं सीसा ॥ ७३ ॥ तुम्हऽम्हाण य जगजीव-बंधवो भव्वकमलवणभाणू । सुगहियनामधेयो, वीरोत्ति गुरु वनस्वामिभणइ भयवं ॥ ७४ ॥ किं तुम्हाण वि अन्नो, कोवि गुरू अस्थि तेहिं भणियंमि । तग्गुणगहणं गुरुणा, परिओसेणं कुणइ एसो कथायां ॥७५ ॥ पव्वावियाण तेसिं, तक्खणमुवणेइ देवया लिंगं । उत्तरिऊणं गिरि-मेहलाहि लग्गा पहे गंतुं ॥ ७६ ॥ पत्ता भिक्खावेला तापसानां आणिज्जउ पारणिज्जमज्ज मए । किं तुब्भमुचियमेवं, वुत्ता ते पायसं बिति ॥ ७७ ॥ भयवं च सव्वलद्धी, भिक्खायरियाए घय- प्रवज्या महुसणाहं । पडिगाहेऊण पडिमगहमि पायसवरं पत्तो ॥ ७८ ।। ताण समोवे भयवं, अक्खीणमहाणसीए लद्धीए । एक्केणं पिहु | केवलं च। पत्तण, पढम मुद्धद्रिया विहिया ॥ ७९ ॥ ते सव्वे पच्छा अप्पणा उ, जिमिओ तओ पडिग्गहगो । खणिओ जाओ तत्तो, तइया चिंतंति जेमंता ॥ ८० ॥ सुकयसुकयाणं अम्हाणमेस जाओ गुरुगुणगरिदो। घयमहुखीरीउ सयं, पारावइ णो त्ति तो तेसिं ॥८॥ खीणावरणाणमपत्तपुव्वमुप्पन्नमुत्तमं नाणं । सेवालिप्पमुहाण, महातवस्सीण ताव लहुं ॥ ८२ ।। उवभुंजिराण खोरिं, जं जायं तेसि केवलं तमहं । मन्ने केवलकवलाणमप्पभेउत्ति सह गिलियं ॥ ८३ ।। सुविसिटछदुभत्तंतपारणे पक्कपत्तभक्खिस्स । कोडिन्नस्स पुणो तावसाण सह पंचहिं सएहिं ।। ८४ ॥ जयपहुणो छत्ताइ-छत्ताइसिरिं निरिक्खमाणस्स । दिन्नस्सउ देवाहिवदेवाऽइसयं नियंतस्स ॥ ८५ ॥ अह गोयमो पयाहिणमाणंदियमाणसो जिणिंदस्स । कुणइ अणुकविलग्गा, ते वि तओ केवलिसभाए ।। ८६॥ गंतूण 0 समासीणा, तित्थस्स नमो त्ति झत्ति वोत्तूण । पच्छा पलोयणपरो, स भणेइ उवेह नमह पहुं ।। ८७ ।। आह पहू तो गोयम !, IG मा आसाएहि केवली एए । अणुतावाउ तओ सो मिच्छादुक्कडपरो जाओ ॥ ८८ ।। पकरेइ परं अधिई, नाहं जम्मे इममि |) सिज्झिस्सं । मइ दिक्खिया वि एए, सज्जो जं केवलं पत्ता ॥ ८९॥ भणइ भयवं सुराणं, गोयम ! वयणं जिणाण वा सञ्चं IN स भणइ जिणाण तो कि, अधिइं काउं समारद्धो ॥ ९०॥ तिहुयणताई ताहे, चत्तारि कडे परूवए एवं । सुंठकडे विदलकडे,
॥२०५॥ १=नतशिर्षाः २ सुठिया-मुवटिया C. DI
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