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उपदेशमालाबिशेषवृत्तिः
ब्रह्मदत्तचक्रिसन्धिः
कालुष्यं कलयाऽपि मा क्व च नगान्माधान्म भोगश्रियं, मा नक्षत्रपतित्वमापदुदयं दोषाऽगमे मा गमत् ।
मा भून्मंडलखण्डनक्षतरुचिः पद्मात्पयं मा विधात्, श्रीचक्रीश्वर ! हुं तथापि विदितं सम्यकलावान् भवान् ॥८४॥ कइयावि सुरवहुगुंफियं व अइफारफुल्लमल्लेहिं । दासी सुदामगंडं करंमि चक्किस्स अप्पेइ ॥ ८५ ॥ तं जिंघतो महुयरिसंगीययनामनाडयक्खित्तो। कत्थ य एवं दिटुंति ईहापोहं करेमाणो ॥ ८६ ॥ सुमरेइ पुव्वजाइं जह सोहम्मे सुराऽऽसि दो अम्हे। पुव्वं च चउभवेसुं जह जाया जमलदासाई ॥ ८७ ॥ इह कहमह स मिलिस्सइ संजीवणओसहीसमो भाया। इय अणिसं झूरंतो चक्की न जिमेइ न सुएइ ॥ ८८ ॥ सचिवेहिं पुच्छिएणं कहिओ सव्वो वि पुव्ववुत्तंतो। नरवइणा तेहिं वि मंतिऊण भणियं जहा देव! ॥ ८९ ॥ दासाइ भवुब्भासणपरायणा पायडा नियसमस्सा । वित्यारिजउ सव्वत्थ कहवि मा सोवि पूरिजा ॥४९० ॥ दुग्धडघडणमहुब्भडविहिवावारेण कहवि जइ नाम । इह खित्तुप्पन्नो सोवि होज जोइज्ज व तुमंपि ॥ ९१ ॥ अत्थि उवाओ एसो विसिट्टिकारित्ति चक्किणा भणियं । पुव्वभवप्पडिबद्धं बद्धं एवं सिलोगद्धं ॥ ९२ ॥
“आस्व दासौ मृगौ हंसौ, मातङ्गावमरौ तथा ।" भणइ निवो जो सोलसक्खरं निक्खिवेइ पच्छद्धं । वियरामि तस्स सोलस दंतिसहस्सा तुरयलक्खं ॥ ९३ ॥ बालाऽवलाइ| वग्गो हालियवालिद्धियाइ सत्थो य । सव्वो पढेइ एयं पूरह न हु कोवि अणुरूवं ॥ ९४ ॥ इओ य-सुमरित्तु पुरियताले चित्तजिओ पुव्वजाइमिब्भसुओ। पव्वइऊणं जाओ पढियसुयत्थो सुगीयत्थो ॥९५।। 'मुणियं सुरोहिणा तेणमासि जह मह सुही सुरो। भरहे चक्की तब्बोहणाय पत्तो स तत्थपुरे ॥ ९६ ॥ तसपाणवीयरहियंमि थंडिले ठाइ झाइ परमत्थं । पढइ पुणरुत्तमेत्तो तमारट्टियनरो अद्धं ॥९७॥ सुणिऊणमिमाई नियाइं पंच जम्माइं चक्किणा एसो । हुं पाढिओ भविस्सइ, झडत्ति मुणिणा तओ पढियं ॥९८॥
१ सुणियं पुरोहिणा तेणमासि जह मह सुही सुरो होही DI २ सुरोहिणाणेण ।।
PooracaeeRecoracae
॥१०॥