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उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
सनत्कुमारचक्रिसन्धिः
तिति सुरा संभविस्य लाए ॥ २४ ॥ बभणय तपासमो। सिरपूणण कुणता॥ २७ ॥ भणियं निवे
पेक्खेमोरात परिक्तियाणमम्हाण
संगम-अमरो पत्तो हरिसमीवे ॥ १९॥ नियतेएणं तरणिव्व, अवरदेवाण तारयाणं व । परिभवमाणो तेयाणि, तो सुरा सक्कमाहंसु ॥ १२० ॥ पहु ! केण हेउणा सव्वउठवणं वपुरि तेयमेयस्स । हरिराह फलं एयं, आयंबिलवद्धमाणस्स ॥ २१ ॥ सुररूवेणमिमेणं, चमक्कओ ताव तुम्ह पडिहाइ । न नियह तं जावऽजवि, चकिस्स सणंकुमारस्स ॥ २२ ॥ अह विजयविजयंता असद्दहंता इमं दुवे देवा । मंतिति सुरा संभविरूवं मणुयस्स कह घडइ ॥ २३ ॥ अहवा-जं जह तं तह जंतयाणमम्हाण जुत्तमपपहुत्तं । अलियंपि सच्चविताण, होइ सामित्तणं लोए ॥ २४ ॥ बंभणरुवं काऊण, ते सुरा तं परिक्खि पत्ता। हत्थिणपुरंमि पत्थिवमुवटिया चिंतयंतेवं ॥ २५ ॥ अइथेवमेव भणिय, सक्केगं तमहियं तु पेक्खेमो। सिरधूणणं कुणंता, निवेण पुट्ठा पयंपंति
॥ २६ ॥ अमरब्भहियं रूवं, तुह निसुणता सविम्हया अम्हे । देसंतराउ दूराउ, आगया रंजिया हियए ॥ २७ ॥ भणियं निवेण | भो भद्द ! भद्दणीगंधतेलपत्थावे । भिट्टा तुब्भेहिं कया, खणं पडिक्खिय निरक्खेह ॥२८ ।। इय ते विसज्जिया मज्जणाइ मज्जइ विसेसओ चक्की। कुणइ कुसुमंसुएहि, चंगं सव्वंगसिंगारं ॥ २९ ॥ हक्कारावेइ दिए, पुणोवि कयरूवगव्वसव्वस्सो। ते वि विभावेऊणं, जाया अइसामलच्छाया ॥ १३०॥ भणियं चमक्किएणं, चक्कहरेणं किमेरिसा तुब्भे । जाया कहेह किं कारणंति तो ते पर्यपंति ॥ ३१ ॥ कयअब्भंगे चंगे, चंगतं आसि जारिसं तुम्ह । अहुणा न तारिसं, खसियमेव सिंगारियस्सावि ॥ ३२ ॥ बहुविहिया ही वाही, संकंता संति तुह सरीरंमि । ते खवयंति वियक्खण ! पइक्खणं खलु तहा रूवं ॥ ३३ ॥ भणइ स कह जाणिज्जइ, किं तुब्भे विजयं वियाणेह । अहवा निमित्तसामत्थमत्थि अइसुत्थियं किंपि ॥ ३४ ॥ किं वा ओहिन्नाणेण, मुणियमिय पुच्छिरस्स चक्किस्स । परिचलिरकुंडलाहरणधारिणो ते सुरा जाया ॥ ३५ ॥ जति जहा हरिवयणमच्छरेणं वयं इहं पत्ता । ता धन्नोसि महायस ! स हरि वि बंदिव्य ते जाओ ॥ ३६॥ वट्टेइ रूवजोव्वणतेयाइ नराण मज्झिम वयं जा । तेण परं परिहायइ, पइक्खणं लेसदेसेण ॥ ३७॥ तुह अच्छेरमेयं, जे खणमेत्तेणमिय विपरिणामो । वाहिवसाओ एयाणुरूवमेत्तो कुणिज्जासु | ॥ ३८ ॥ इय भणिऊणं पत्तेसु, तेसु सगंमि चक्काट्टी वि । नियइ नियअंगचंगिममवचियमुवलक्खए सक्खं ॥ ३९ ॥" एत्तियमित्तण
तु भेहि कया अहे। देसंत
कुसुमंस
peraezzredereroecomewwein
॥ ७६॥
पत्तेसु, तेसु सामि चकाटी व खमेत्तेणमिय विपरिणामो । वामाझम वयं जा। तेण परं पार