SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यतिल ० ॥ ७४ ॥ सक्कं चिय कुतो ॥ ११२ ॥ सहसा असक्कचारी परपमायंमि जो परुइ पला । खलमित्तिव ए किरिया सलाह शिका हवे तस्स ॥ ११३ ॥ दबाइनाण निणं श्रवमन्नंतो गुरुं सक्कचारि जो । सिवनूष कुतो हिंरुइ संसाररनंमि ॥ ११४॥ हवइ सकारंजो अकरिसजाए कम्मेण । निजणेण साणुबंधं एकड़ पुए एसऊिं च ॥ ११५ ॥ संघयणादणुरुवे सक्कारंजे अ साहए बहु । चरणं निवमइ न पुणो असंजमो तेणिमो गरु ॥ ११६ ॥ संघयणाईावणं तु सिढिला - ए जं चरणघाई । सक्कारंजा तयं तबुद्धिकरं जर्ज जयिं ॥ ११७ ॥ संघयण काल बस दूसमारयालंबणा घित्तूणं । सबं चिय शियमधुरं शिरुकमाउ पमुच्चति ॥ ११८ ॥ कालस्स य परिहाणी संजमजुग्गाइ एत्थि खित्ताई । जयाइ वट्टि उ जया जंजए अंगं ॥ ११७ ॥ जाय गुणेसु रागो पढमं संपत्तदंसणस्सेव । किं पुए संजमगुण अहिए ता तंभि वत्त ॥ १२० ॥ गुणवुढि परग्गयगुणरत्तो गुणलवं पि संसेइ । तं चैव पुरो काउं तग्गयदोसं वेदे ॥ १२१ ॥ जह मुत्तयमुोि पुरो कयं आगमेसिनद्दत्तं । थेराण पुरो न पुणो वयखलिश्रं वीरणाहेणं ॥ १२२ ॥ एत्तोच्चिय किकम्मे हिगिचालवणं सुदयं । गुणलेसो विहग जं जणां कप्पासंमि ॥ १२३ ॥ दंसणनाणचरितं तव विणयं | जत्थ जत्ति पासे । जिपन्नत्तं जत्ति पूए तं तहिं जावं ॥ १२४ ॥ परगुणसंसा उचिया अनासाहारणत्तऐव तहा । जह विहिया जिएवझणा गुण निहिणा गो माईणं ॥ १२५ ॥ परगुणगहणावेसो जावचरित्तिस्स जह जवे पवरो । दोसलवेण वि निणं जहा गुणे निग्गुणे गुणइ ॥ १२६ ॥ परिबंधस्स न देऊ पियमा एयस्स होइ गुणहीणो । सयो वा सीसो वा गणिबर्ड वा जर्ज श्रिं ॥ १२७ ॥ सीसो सनिल वा गणिबर्ड वा न सोग्गई ऐइ । जे तत्थ नापदंसणचरणा ते समुच्चय ॥ ॐ ॥
SR No.023511
Book TitleNyayacharya Yashovijayji Krut Granthmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1909
Total Pages364
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy