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सिद्धांतरहस्य ॥५९॥
छट्ठाथी अगीयारमा गुण०नी स्थिति ज० एक समयनी, उ० अंत०नी. बारमा गुण०नी स्थिति ज० ने उ० अंत नी. चौदमा गुणठाणानी स्थिति-अ इ उ ऋ ऌ ए पांच लघु अक्षरना उच्चार काल प्रमाणनी. चोथो क्रियांद्वार कहे छे:- १, २, ३ ए त्रण गुणठाणे इर्यावही वर्जीने क्रिया २४ होय, चोथे गुणठाणे २३ क्रिया होय, इर्यावहीनी अने मिथ्यात्वनी ए वे वर्जीने. पांचमे गुणठाणे क्रिया २२ होय, इरियावहीनी, मिथ्यात्वन अप्रत्याख्याननी एत्रण वजने छट्ठे गुण० १३ क्रिया होय १ काइया २ अहिगणिया, ३ पाउसिया ४ पारितावणिया ५ आरंभिया, ६ मायाबत्तिया ७ दिठिया, ८ पुठिया, ९ वियारणिया १० अणाभोगिया, ११ अणवकखवत्तिया, १२ पेज्जवत्तिया अने १३ दोसवत्तिया. सातमे गुणठाणे आरंभिया सिवाय, १२ क्रिया होय. आठ नवमे गुणठाणे मायावत्तिया सित्राय ११ क्रिया होय. दशमे गुणठाणे दोसवत्तिया सिवाय १० क्रिया
१ भगवती सूत्रमां प्रमत्त अप्रमत्त गुणठाणानी स्थिति देशे उगा कोड पूर्वनी कट्टेल छे, तेनो भावार्थ ए छे के ए बन्ने गुणठाणा अंतर्मुहू अंतर्मुहूर्ते बदले छे. प्रमत्त गुन्नुं अंतर्मुहूर्त मोटुं अने अग्रमस गु०नुं अंतर्मुहूर्त नानुं होय छे, माटे सर्व अंतर्मुहूर्त भेळा करतां देशे उणा पूर्व कोड प्रमत्त गु०नो काल मान थाय अने अप्रमत गुणठाणा माटे जे स्थिति कट्टेल छे ते केवलीनी अपेक्षाण जाणवी. प्रमत्त सिवायना सर्व संयतो अग्रमतिज होय के संयमना स्थानी असंख्य लोकाकाश प्रमाणे छे, तेमां संक्लेश स्थानो अने विशुद्ध स्थानो के संक्लेश स्थानमां वर्ततां प्रमत्त गुणस्थान होय अने विशुद्ध स्थानमां वर्ततां अप्रमत्त गु० होय कोइ पण एक स्थानमां अंतर्मुहूर्त उपरांत स्थिति नथी, माटे बने गुब्नो पलटो थाय छे. २ आठमे गुणठाणे जो के माया कपाय छे, परंतु माया किया नथी; कारण ? सूक्ष्म माया होवाथी तेनो संग्रह रागवतिया कियानां होवाथी मायाव त्तिया क्रिया बर्जी छे.
गुणठाणा
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